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________________ गा० ६२] उत्तरपडिजदारणाए ठाणाणं भुजगारपरूषणा २१७ भुज०-अप्प-अवष्टि० केतिया ? अणंता । अवत्त० केति ? संखेनी । एवं तिरिरखेसु । णकरि अयत्त० णस्थि । प्रादेसे साक्षाधकेतिक्षविजया महाराज एवं सचणेरइय०-सब्बपंचिंतिरिक्ख-मणुसअपज-देवा भरणादि जाव सहस्सार त्ति | मणुसेसु अवत्त० केत्ति ? संखेजा। सेसपदा केत्ति ? असंखेना । मणुसपन०मणुसिणी० सब्यपदा केति ? संखेजा । आणदादि सबट्ठा ति अप्प० केत्ति ? असंखेजा । णवरि सबढे संखेजा । एवं जावः । ४८१. खेत्ताणु० दुविहो णि०-प्रोघेण प्रादेसे० । अोघेण मोह तिष्णि पदा केव० ? सबलोगे। अयत्त० लोग० असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा० । वरि अवत्त. पत्थि । सेसगदीसु सव्वपदा लोग० असंखे भागे । एवं जाव० । ४८२. पोसणाणु, दुविहो गि०-ओघेण आदेसे० । अोधेण मोह. तिएिणपदेहिं सबलोगो पोस । अवत्त० लोग० असंखे०भागो । एवं तिरिक्खा । णवरि अपत्त० णस्थि । ४८३. आदेसे णेरइय० सन्चपद० लोग. असंखेजदिभागो छचोइस० मोहनीयको भुजगार, अल्पतर और अवस्थितस्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त है। अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव किनने है १ संख्यात हैं । इसीप्रकार तिर्यकचों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवतव्यपद नहीं है। आदेशसे नारकियों में सब पदोंके उदीरक .. जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसीप्रकार सत्र नारकी, सब पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवों में जानना चाहिए । मनुष्यों में श्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं ? शेष पदोंके उवीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में सब पदोंके उदीरक जीव कितने है ? संख्यात हैं। क्रानतकल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवों में अल्पतरस्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ! असंख्यात हैं। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें संख्यान है । इसीप्रकार अनाहारक मागणा तक जानना चाहिए। ४८१, क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओघसे मोहनीयके तीन पदोंके उदीरक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोक क्षेत्र है। प्रवक्तव्यपदके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार सामान्य तिर्यकचों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अयक्तव्यपद नहीं है। शेष गतियोंमें सब पदों के उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। १४८२, स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और भादेश । श्रोधसे मोहनीयके तीन पदोंके उदीरक जीवोंने सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार सामान्य तिर्यस्त्रोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें प्रवक्तव्यपद नहीं है। ४८३. आदेशसे नारकियों में सब पदोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातः भाग १. साप्रती असंज्जा इति पाठः । २. प्रा०-ता०प्रस्योः वसंखेज्जा इति पाठः । २.
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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