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________________ ' गा० ६२ ] उत्तरपयष्टिउदीरणाए ठाणा से सागियोगारपरूवणा वरि मणुस पत्र मोह० उक० श्रणुक० डि दिउदीर० अट्ठ गंगा । एवं जाव Q ६ ४४२. जह० पदं । दुविहो णि० ओघेण घासे० । प्रोषेण तं नेत्र अप काढूण मोह० जह० जह० विदिउदीरगाणं तिरिण भंगा। एवं चदुसु गदीसु । वरि तिरिक्खेसु जह० जह० डिदिउदीरगा खिय० ग्रन्थि । मणुस अपज्ज० जह०श्रजह० श्रभंगा । एवं जाव० | n , -1 ३४४३. भागाभागा दुविहं - जह० उक० | उकस्से पयदं । दुविहो णि०श्रोषेण आदेसेण य । श्रोषेण मोह० उक्क० द्विदिउदी० सव्वजी० के० ? श्रांतभागो । अणुक्क० अता भागा। एवं तिरिक्खेसु । आदेसेण शोरइ० मोह० उक्क०विदिउदी० असंखे० भागो । अणुक० असंखेजा भागा । एवं सच्चणे रइय० - सव्वपंचिदियतिरिक्ख मणुस मणुस अपज० देवा जाव अवराइदा ति । मणुसपअ ०मसिणी- सव्वदेवे उकस्सट्टिदिउदी० संखे० भागो । अणुक्क० संखेजा भागा | एवं जाब० । 0 ४४४. जह० पदं । दुविहो णि ध्यानचमोत्रेण आदेश सिरमोद महाराज जह० डिदिउदीर० सबजी० के० भागो १ असंतभागी । श्रजह० अयंता भागा । किरकि कि मनुष्य अपर्याप्तकामे मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उदरकोंके आठ भंग हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | २०१ ६ ४४२. जनन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रोसे पदको करके मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थिति के उदीरकों के तीन भंग जानने चाहिए | इसीप्रकार चारों गतियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि तिर्यखों में जघन्य और अन्य स्थितिके उदारक जीव नियमसे हैं। मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयकी जयन्य और अजघन्य स्थिति के उदारकों के आठ भंग हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | - ३४४३. भागाभागानुगम दो प्रकारका है- -- जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— श्रोव और आदेश । श्रघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार विर्यश्चांमें जानना चाहिए। आदेश से नारकियोंमें मोहनीकी उदष्ट स्थितिके उदीरक जीव सब जोषोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं तथा अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव सच जीवोंके असंख्यात बहुभागप्रमाण है । इसीप्रकार सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यञ्च सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव और अपराजित कल्प तक देवों में जानना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें उत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव सब जीवों के संख्यातवें भागप्रमाण है और अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव सब जीवोंके संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | १४४४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— मोघ और आदेश । श्रोपसे aisatest जन्य स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तर्वे २६
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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