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________________ १६८ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज सहिदी । एवं पंचिदियतिरिक्खा पञ्ज० मणुसच पञ्च० । णवरि अंतोमु० | मणुसतिए मोह० जह० द्विदिउदी • जहण्णुक एयसमत्र । एयसमओ, उक्क० सगट्टिदी | एवं जाव० । ० ५ [ वेदगो ७ जह० उक० अज० जह० ३४३७. अंतरं दुविहं – जह० टक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो खिदेसोघे आदेसेण । श्रघेण मोह० उक्क० डिदिउदी० जह० अंतोनु०, उक० अतिकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । प्रणुक० जह० एयस०, उक्क० अंतो० । एवं तिरिक्खेसु । ४३८. देसेण रइय० मोह० उक्क० हिदिउदी० जह० अंतोमुहुतं, उक० तेत्तीस सागरो० देणाणि । अणुक्क० ओघं । एवं सव्व णेरइय० । णरि सगहिदी ...... VINOZY एक समय कम एक आवति है और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रभार हैं। इसीप्रकार पक्रेन्द्रिय निर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें श्रजघन्य स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्यत्रिक में मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणा । जवन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गशा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ — पूर्व में जो खुलासा कर आये हैं उसे ध्यान में रखकर तथा अपने-अपने स्वामित्वको लक्ष्य में रखकर उक्त विषयका स्पष्टीकरण हो जाता है, इसलिए यहाँ अलगसे खुलाखा नहीं किया । ६४३७. अन्तर दो प्रकारका है- - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृटका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - और आदेश । श्रवसे मोहनी की उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार तिर्यक्रम है। त्रिशेषार्थ – मोहनीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होकर पुनः उसका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कमसे कम के पहले नहीं होता तथा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त पर्यायका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। यही कारण है कि यहाँ मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल कहा है। मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक समय तक हो यह भी नियम है और अन्तर्मुहूर्त काल तक हो यह भी नियम हैं । इसीसे यहां अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है । सामान्य तिर्यचामं यह ओघप्ररूपणा अविकल घटित हो जाने से उनमें आपके समान जानने की सूचना की है। ६ ४३८. आदेश से नारकियों में मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल ओके समान है। इसीप्रकार सत्र नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है,
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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