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उत्तरपडिउदीरणार ठाणा सेसा थियो गद्दारपरूवरणा
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एवं चैव विदियादि सत्तमा चि । खबरि २१ जह० एयस०, उक्क० चउवीस महोरते सादिरेंगे । एवं जोगिणी. भवण वाण ० - जोदिमि० । पंचिदियतिरिक्ख श्रपञ्ज पदाणं णत्थि अंतरं णिरंतरं । मणुसतिए ओयं । णवरि मणुसिणी०जम्मिलम्मासं, तम्मि वासवतं । मणुसअप सच्चपदर वे० जह० एयस० उक० पलिदो० असंखे० भागो । अणुद्दिमादि २६२४२१ प्रागदेश कसबडा जय श्री सुविधा एलिस अंतर । २२ जह० एम०, उक्क० वासपुधत्तं । सब्ब पलिदो ० संखे भागो । एवं जावे० । और सौधर्म कल्पसे लेकर नौ मैवेयक तक के देवों में जानना चाहिए। दूसरी पृथिवीसे लेकर ernal प्रथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है । इसी प्रकार योनि तिर्यञ्ज, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में जानना चाहिए। पब्वेन्द्रिय तिर्यवपर्यातकों में सब पदोंके प्रवेशकों का अन्तर नहीं है, निरन्तर हैं। मनुष्यत्रिक में
के समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियों में जहां छह माह कहा है वहां वर्षपृथक्त्व कहना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पदोंके प्रवेशकों का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्य के असंख्यानवें भागप्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में २८, २४ और २१ प्रकृतियों के प्रवेशकों का अन्तर काल नहीं है २२ प्रकृतियों के प्रवेशका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्प्राण है तथा सर्वार्थसिद्धिमें उत्कृष्ट अन्तर पल्यके संख्यातवें भाग प्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मागे तक जानना चाहिए |
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विशेषार्थ – नारकियों में २८, २ २६, २४ और इक्कीस प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव सर्व पाये जाते हैं, इसलिए उनके अन्तर कालका निषेध किया है । २५ और २२ प्रकृतियों के प्रवेशकों का अन्तरकाल जैसा श्रीघप्ररूपणा में घटित करके बतलाया है वैसा यहां भी बन जाता है। पहली पृथिवी नारकी, सामान्य तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय तिर्यस्य द्विक, सामान्य देव और सौधर्म कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें यह प्ररूपणा बन जाती है, इसलिए उनमें सामान्य नारकियों के समान जानने की सूचना की हैं। द्वितीयादि पृथिवियोंके नारकी, योनिनी तिर्यच और मनन्त्रिक में और सब प्ररूपणा तो सामान्य नारकियोंके समान बन जाती है मात्र इनमें क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते हैं, इसलिए श्रनन्तानुबन्धीतुष्कके वियो जक उपशमसम्यग्दष्टियों की अपेक्षा २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकों के अन्तरकालका कथन किया हूँ जो जघन्य एक समय और उत्कृष्ट २४ दिन-रात प्राप्त होता है। पचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्या
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कोंमें सम्भव सब पढ़ोंका अन्तरकाल नहीं है यह स्पष्ट ही है। मनुष्यत्रिक में प्रधके समान है यह भी स्पष्ट है । मनुष्यिनियों में क्षपणाका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट श्रान्तर वर्षत्प्रमाण है, इसलिए इनमें २३, १३, २ और १ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंका उक्त अन्तर बतलाने के लिए यह सूचना की है कि इनमें जहां छह माह अन्तर कहा है वहां वर्षपृथक्त्व जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्त सान्तर मार्गणा है। इसका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यात्तव भागप्रमाण है, इसलिए यहां सब पर्दोंके प्रवेशकोंका उक्त अन्तर कहा है। नौ अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवोंमें २८, २४ और २१ प्रकृतियों के प्रवेशकों का अन्तरकाल नहीं है यह स्पष्ट है। साथ ही इनमें कृतकृत्यवेक सम्यष्टि जीव कमसे कम एक समय के अन्तर से और अत्रिकसे अधिक वर्षपृथक्त्वके अन्तरसे उत्पन्न होते हैं, इसलिए इनमें २२ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पृथक् प्रमाण कहा है। मात्र सर्वार्थसिद्धि में उत्कृष्ट अन्तर पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण है ।