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________________ का सावाद्यासागर जा महाराज जयधवलासहिदे कसायपाहुडे वेदगो एयसमओ, उक० पलिदो० असंखे भागो । २३ जहष्णु० अंतोमु० । २२ २०१९ १३ १२९६३२१ जह० एगसमओ, उक्क० अंतोषु० । १०७ ४ जह एगस०, उक्त संखेशा समया । ३३८, आदेसेण गैरइय० सव्वपदा० सव्वदा । णवरि २५ पवे. ओघं । २२ जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । एवं पढमाए । तिरिक्त-पंचिं०तिरि० दुग०देवा सोहम्मादि जार णयगेवजा ति विदियादि जाव सत्तमा ति एवं चैव । णवरि है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । २३ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। २२, २०, १६, १३, १२, ९, ६, ३, २ और १ प्रकृतियों के प्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं । १०, ७, और ४ प्रकृतियों के प्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। विशेषार्थ-२८, २७, २६, २४ और २१ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव सर्वदा पाये जाते हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा सर्वदा काल कहा है। कारण स्पष्ट है। २५ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव सासादन सन्यहीष्ट होते है और उनका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । यही कारण है कि यहाँ पर इस पदके प्रदेशकोंफा उक्त काल कहा है। २३ प्रकृतियोंके प्रवेशक जिन्होंने सम्यग्मिथ्यात्वकी क्षपणा कर ली है वे हाते हैं और पेसे जीव लगातार अन्तर्मुहूर्त काल तक ही पाये जाते हैं, क्योंकि मिथ्यात्वकी क्षपणा बाद सम्यग्मिथ्यात्वकी नपणामें अन्तर्मुहूर्त काल लगता है। अब यदि नाना जीव भी क्रमसे अत्रुटित परम्पराके साथ सम्यक्त्वकी क्षपणा करें तो वे संख्यात होनेसे उनके कालका जोड़ अन्तर्मुहूर्त .. ही होगा। यही कारण है कि यहोंपर २३ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंका जघन्य और उत्कृष्ट फाल । अन्तर्मुहूर्त कहा है। २२, २०, १६, १३, १२,६, ६, ३, २ और १ प्रकृतियों के प्रवेशकोंकी पूर्वमें जो समुत्कीर्तना बतलाई है और उस आधारसे जो स्वामित्व कहा है उसे देखते हुए इन पदोंके प्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूतं बनने में कोई बाधा नहीं वाती, इसलिए इन पदोंके प्रवेशकोंका उक्त काल कहा है। तीन प्रकारके लोनमें मायासंज्वलनका प्रवेश कराने पर चार, तीन प्रकारकी मायाके ऊपर भानसंज्वलनका प्रवेश कराने पर सात और तान प्रकारके मानके ऊपर क्रोध संज्वलनका प्रवेश कराने पर १० प्रकृतियों का प्रवेशक होता है। चूंकि इन प्रवेशस्थानों का एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अब यदि अत्रुटित सन्तानके साथ नाना जीव इन प्रवेशस्थानों को प्राप्त हों तो उस सष कालका जोड़ संख्यात समय ही होगा और एक समय तक इन प्रवेशस्थानों को प्राप्त कर दूसरे समयमै सन्तान भंग हो जाय तो इन प्रवेशस्थानका एक समय काल प्राप्त होगा। यही सब समझकर यहाँ पर इन पदोंके प्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। ६३३८. आदेशसे नारकियों में सब पोंके प्रवेशकोंका काल सर्वदा है। किन्तु इतनी विशेषता है कि २५ प्रकृतियों के प्रवेशकोंका काल पोषके समान है। तथा २२ प्रकृतियों के प्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। इसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकी, सामान्य तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यचद्विक, सामान्य देव और मौधर्मकल्पसे लेकर भौ प्रवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। दूमरौ पृथिवीसे लेकर सातवों पृथिवी तक नारकियों में इसी प्रकार जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि २२ प्रकृतियों के प्रवेशकोंका
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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