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________________ अययवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदो ७ ६३३५. तिरिक्खेसु २८ २७ लोग० श्रसंखे० भागो सव्वलोगो वा । २६ पर्व० सच्चलोगी दिछु लोग सर्व भागों सत्तचोह० दे०। २४ लो० श्रसंखे० भागो सुविधिसागर महाराज छवोस देखणा | सेसं लोग असंखे० भागो । एवं पंचि०तिरिक्खतिए । वरि २६ लोग० श्रसंखे० भागो सव्वलोगो वा । पंचि०तिरिक्खप्रपज ०~ मणुस अपज० सच्चपदा० ० असंखेजदिभागो सञ्चलोगो वा । मणुसतिए २८ २७२६ २५ पंचिदियतिरिक्खभंगो | सेसपद० खेत्तं । | १५२ होते हैं और २५ प्रकृतियोंके प्रवेशकों में सासादन जीवों की मुख्यता है। यही कारण है कि इनकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और नालीके चौदह भागों में से पाँच भागमा कहा है । यहाँ शेष पदोंके प्रवेशकों में सम्यग्दृष्टि जीवोंकी मुख्यता है, इसलिए इनके प्रवेशकों का लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक के नारकियों में अन्य सब कथन सामान्य नारकियोंके समान ही है। मात्र दो बातोंको विशेषता है। प्रथम तो यह कि अतीत स्पर्शन कहते समय अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिए । दूसरे सातवीं पृथिवीके नारकी मिध्यात्वके साथ ही मरण करते हैं ऐसा एकान्त नियम है, इसलिए उनमें २५ प्रकृतियों के प्रवेशकों का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है। तथा पहली पृथिवीके नारकियों का स्पर्शन ही क्षेत्रके समान है, इसलिए इनमें सब पोंके प्रवेशकों के स्पर्शनको क्षेत्रके समान जाननेकी सूचना की है। १३३५ तिर्यश्वामें २८ और २७ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । २६ प्रकृतियोंकि प्रवेशकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। २५ प्रकृतियों के प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और नालीके चौदह भागों में से कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। २४ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यात भाग और मनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यवत्रिक में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें २६ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लाकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपयातकों व पोंके प्रवेशकोंने लोकके असंearn भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिक में २८, २५, २६ और २५ प्रकृतियों के प्रवेशकका स्पर्शन पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोके समान है। शेष पदोंके प्रवेशकांका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । विशेषार्थ --तियंचा २८ प्रकृतियोंके प्रवेशकों में २८ प्रकृतियोंकी सत्तावाले सादि मिध्यादृष्टि और अनन्तानुबन्धीके अवियोजक वेदक सम्यग्दृष्टियोंकी मुख्यता है । २७ प्रकृतियोंके प्रवेशक सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर स्थित हुए मिध्यादृष्टि हैं और ऐसे तियंचोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और अतीत स्पर्शन सर्व लोक प्रभास सम्भव होनेसे उक्त पदों के प्रवेशकों का यह स्पर्शन कहा है। परन्तु अनन्तानुबन्धी चतुष्क के वियोजक वेदकसम्यग्दृष्टियों का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और प्रसन्नालीके चौदह भागों में से कुछ कम छेद भाग प्रमाण ही समझना चाहिए । यहाँ पर २८ प्रकृतियों के प्रवेशक कौन जीव हैं यह दिखलाने के लिए उक्त जीवोंका संग्रह किया है । २६ प्रकृतियोंके प्रवेशक सामान्य तियचोंका
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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