________________
१५१
गा०६२] उत्तरपयडिउदीरणाए ठाणाणं पोसणारिणयोगद्दारं असंखे० भागो अनुचोड्स० । सेसपदे लोग असंखे भागो।
३३४, आदेसेण गेरइय० २८ २७ २६ पवे लोग. असंख०भागो छ चोदस० देसूणा। २५ लोग० असंखे भागो पंचचोद्दस० । सेसं खेतं । एवं विदियादि जाव सत्तमा त्ति । गवरि सगपोसणं । सत्तमाए २५ पत्रे० खेत्तं । पढमाए खेनं ।
और त्रसनालीके चौदह भागामसे कुछ कम आठ और बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। २४, २२ और २१ प्रकृतियों के प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौवह भागोंमेंसे कुछ कम माठ भागामारण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-ओबसे छब्बीस प्रऋतियोंके प्रवेशकोंका जब क्षेत्र ही सर्व लोक प्रमाण कहा है तघ इनका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण होना सुनिश्चित है। जो सम्यक्त्वसेच्युत होकर सम्यक्त्वकी अद्वेलना होने के पूर्व तक मिथ्यात्यके साथ रहते हैं या अनन्तानुबन्धीके अवियोजक वेदकसम्यग्दृष्टि होते हैं वे ही २८ प्रकृतियोंके प्रवेशक होते हैं। तथा जो २८ प्रकृतियोंके प्रवेशक होते हैं, तथा जी २८ प्रकृतियों की सत्तावाले जीव सम्यक्त्व प्रकृतिकी उद्वेलना कर लेते हैं वे २७ प्रकृतियोंके प्रवेशक होते हैं. इसलिए इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारवस्वस्थान श्रादिकी अपेक्षा अतीशकसनालोकोचोदा था शाम अगममाण और मारणान्तिक समुद्घात तथा उपपादपदकी अपेक्षा अतीन स्पशन सर्व लोकप्रमाण प्राप्त होना सम्भव है। यही समझकर इन दो पदोंके प्रवेशकोंका उक्तः स्पर्शन कहा है। यह सामान्य कथन हैं। वैसे अनन्तानुबन्धो चतुष्क के अविसंयोजक २८ प्रकृतियों के प्रवेशक सम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शन सर्वलोक प्रमाण नहीं बनता है इतना विशेष जानना चाहिए । २५ प्रकृतियों के प्रवेशकोंमें सासा. दन जीवोंकी मुख्यता है और इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम पाठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण बतलाया है, इस लिए यहाँ पर उक्त पदके प्रवेशकोंका यह स्पर्शन कद्दा है । २४, २२ और २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकों में सम्यग्दृष्टि जीवोंकी मुख्यता है। और इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम पाठ भागप्रमाण कहा है। यही कारण है कि यहाँ पर उक्त पदोंके प्रवेशकों का यह स्पर्शन कहा है। शेष पदोंके प्रवेशकोंका सम्बन्ध उपशमणि और क्षपकणिसे है और ऐसे जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है। यही कारण है कि इन पदोंके प्रवेशकों का यह स्पर्शन कहा है।
६३३४. आदेशसे नारकियों में २८, २७ और २६ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवं भाग और असनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। २५ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातयें भाग और बसनालीके चौदह भागोमसे कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके प्रवेशकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारक्रियों में जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि अपना स्पर्शन कहना चाहिए । सातवी पृथिवीमें २५ प्रकृतियों के प्रवेशकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पहली पृथिवीमें सब पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ-.-सामान्यसे नारकियोंमें २८, २७ और २६ प्रकृतियोंके प्रवेशक मिथ्याष्टि जीवोंके मारणान्तिक समुद्घात और उपपादके समय भी सम्भव हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और अतीत स्पर्शन समालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण कहा है। छटवें नरक तकके सासादन जीव ही मरकर अन्य गति में उत्पन्न