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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ___३२८. दो ? णाणाजीवावेक्खाए एदेसि पवेसट्ठाणाणं धुवभावेण सव्वकाल ससाणाण धुचभावण सचकालपाबालदसणाक्षर्व श्री सुविधिसागर जी म्हाराज ॐ सेसाणि हाणाणि भजियन्वाणि | ३२९. कुदो ! पणुवीसादिसेसपवेसठ्ठाणाणमधुवभावदसणादो । एत्थ भंग.. पमाणमेदं १४३४८९०७ । एवं मणुसतिए । आदेसेण गरइय० २८ २७ २६ २४ .. २१ रिणय अस्थि । सेसपदाणि भयणिजाणि । भंगा ९ । एवं पढमाए तिरिक्खपंचिदियतिरिक्ख०२-देवा सोहम्मादि जाव णवगेवजा ति। विदियादि सत्तमा त्ति २८ २७ २६ २४ रिणयमा अस्थि । सेसपदा भयणिज्जा । भंगा २७ । एवं जोणिणिभवण-बाणवें-जोदिसियाणं । पंचिंतिरि०अपज्ज. २८ २७ २६ णियमा अस्थि । मणुसअपल० सव्वपदा भयणिज्जा | भंगा २६ । अणुद्दिमादि सब्वट्ठा ति २८ २१२१ णियमा अस्थि । २२ पवे० भयणिजा। भंगा ३ । एवं जाप० । ६३२८. क्योंकि नाना जीवाकी अपेक्षा इन प्रवेशस्थानोंका ध्रुवरूपसे सर्वदा अवस्थान देखा जाता है। * शेष प्रवेशस्थान भजनीय हैं। ६३२६. क्योंकि पचीस प्रकृतिक श्रादि शेष प्रवेशस्थान अधूवरूप देखे जाते हैं। यहाँ पर भंगाका प्रमाण यह है-१४३४८६०७ । इसीप्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए । आदेशसे ..... नारकियोंमें २८, २७, २६, २४ और २१ प्रकृतियों के प्रवेशक जीव नियमसे हैं । शेष पद भजनीय । हैं। भंग ६ हैं। इसी प्रकार प्रथम पृथिवोके मारकी, सामान्य तिर्थच, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चद्विक -.. सामान्य देव और सौधर्म कल्पसे लेकर नौ ग्रेवेयक तकके देवों में जानना चाहिए। दूसरीस लेकर सासवीं तक के नारकियों में २८, २७, २६ और २४ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं ! भंग २७ हैं। इसीप्रकार योनिनी तिर्यन, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवामें जानना चाहिए । पश्चेन्द्रिय तिर्थश्च अपर्याप्तकोंमें २८,७ और २६ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव नियमसे हैं। मनुष्य अपर्याप्तकाम सब पद भजनीय है। भंग २६ हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें २८, २४ और २१ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव नियमसे हैं। २२ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव भजनीय हैं। भंग तीन हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-प्रोबसे पाँच प्रवेशस्थान ध्रुव हैं भौर पन्द्रह प्रवेशस्थान अध्रुव हैं । अतएष एक जीन और नाना जीवोंकी अपेक्षा पन्द्रह बार तीन संख्या रखकर गुणा करने पर कुल भंग १४२४८६०७ आते हैं। इनमें एक ध्रुव भंग भी सम्मिलित है। यथा-३४३४३४३४३४३ x ३४३४३४३४३४३४३४३ x ३-१४३४८६०७ । इसी प्रकार आगे गति मागरणाके भेदोंमें जहाँ जितने अधूव प्रवेशस्थान हैं उतनी बार तीन संख्या रखकर गुणा करनेसे उस उस मागणाके सब भंग प्राप्त कर लेने चाहिए। कोई विशेषता न होनेसे अलग अलग स्पष्टीकरण नहीं किया है। मात्र मनुष्य अपर्याप्तकीम २८, २७ और २६ ये तीन प्रवेशस्थान हैं जो अध्रुव हैं, इसलिए इनमें एक ध्रुव भंगको छोड़कर २६ भंग प्राप्त होते हैं।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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