________________
[वेदगो
मागदश
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे तिषिण पलिदो० पुनकोडिपुधत्तेणमहियाणि । पंचि तिरि अपज०-मणुसअपज० २८ २७ २६ णस्थि अंतरं ।
___ ३२५. मणुसतिए २८ २६ २५ २४ २२ २१ जह० अंतोमु०, २७ जह० पलिदो० असंखे भागो, उक्क० सव्वेसिं तिष्णि पलिदो पुवकोडिषुध० । २३ पत्थि अंतरं । २० १९ १३ १२ १० ९७ ६ ४ ३ २ १ जह० अंतोमुहूत्तं, उक. . पुन्यकोडिपुध० । पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। पश्शेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीशे में २८, २७ और २६ प्रकृतियोंके प्रवेशकका अन्तरकाल नहीं है।
विशेषार्थ- यहाँ पर सर्वत्र जघन्य अन्तर सब पदोंके प्रवेशकका जिस प्रकार नरकमें घटित कर बतला आये हैं उसीप्रकार घटित कर लेना चाहिए। मात्र उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त करते समय अधिकसे अधिक कितने अमरोये प्रवेशान ग्रामवाहासावितोमानकर उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त करना चाहिए। यथा-२८, २७, २५, २४, २२ और २१ प्रकृतिक प्रवेशस्थान उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण अन्तरसे प्राप्त किये जा सकते हैं, क्योंकि ये प्रवेशस्थान सम्यक्त्व पूर्वक होते हैं और सम्यक्त्वका उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। मात्र २६ प्रकृतियोंके प्रवेशस्थानका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य ही बनता है, क्योंकि जो २६ प्रकृतियोंकी सत्तावाला तिर्यच उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कर क्रमसे यथायोग्य अविवक्षित स्थानोंका प्रवेशक हो जाता है वह अधिकसे अधिक साधिक तीन पल्य काल तक ही अन्य अविवक्षित पदोंके साथ तिर्यश्च पर्यायमें रह सकता है। उसके बाद या तो तिर्यश्व पर्याय अदल जाती है या वह पुन: २६ प्रकृतियोंका प्रवेशक हो जाता है। चूं कि यहाँ २६ प्रकृतियों के प्रवेशकका तिर्यञ्च पर्याय रहते हुए उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त करना है, इसलिए २६ प्रकृतियोंकी सत्तावाला ऐसा तिर्यश्च जीव लो जो उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कर मिथ्यात्वमें जावे और वहाँ सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वी उद्वेलना करता हुआ वेदक कालके भीतर तीन पल्यकी आयुवाले तियनों में उत्पन्न हो । फिर सम्यग्दृष्टि हो, जब इस आयुमें पल्यका पसंख्यातवाँ भाग काल शेष रहे तब मिथ्यात्वमें जाफर उक्त दोनों प्रकृतियाँकी उद्वेलना कर पुन: छब्बीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो जाये । पञ्चन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकी उत्कृष्ट कायस्थिति पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है, इसलिए इनमें सब प्रवेशस्थानोंका उत्कृष्ट अन्तर उक्त काल प्रमाण कहा है। जघन्य अन्तरका स्पष्टीकरण पूर्ववत् ही है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवों में २८, २७ और २६ प्रकृतियोंके प्रवेशस्थान इन पर्यायोंके रहते हुए दो बार नहीं प्राप्त होते, इसलिए इनमें उक्त प्रवेशस्थानोंके अन्तर कालका निषेध किया है।
६३२५. मनुष्य त्रिको २८, २६, २५, २४, २२ और २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, २७ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और सब स्थानोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक सीन पल्य है। २३ प्रकृतियों के प्रवेशकका अन्तरकाल नहीं है । २० १६, १३, १२, ५०, ५, ७, ६, ४,३, २ भौर १ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है।
विशेषार्थ-ओषप्ररूपणामें सब स्थानोंका जो जघन्य अन्तर घटित फरके बतलाया है वह यहाँ पर भी उसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए। मात्र वहाँ २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकका