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________________ १३२ जयधषलासहिदे कसायपाहुडे [दगो लोहसंजलणमोकाडिय एगसमयमे किस्से पवेसगो होदण से काले तिराह पवेसगो जादो । अथवा उवसमसेडिं चढमाणगो पुरिसवेदपढमट्ठिदि गालिय एगसमय मेकिस्से पवेसगो होदूण से काले कालं कादण देवेसुप्पण्णो, लदो एयसमयमेत्तो एकिस्से पवेसगस्स जहएणकालो। ६२९१. संपहि दोण्हं पवेस० वुचदे । तं कथं ? उवसमसेटिं चढमाणो अंतरकरणं समाणिय तदो समयूणावलियमेत्तकालं बोलाविय दोण्हं पये जादो । से काले कालगदो देवेसुष्पञ्जिय पञ्जायंतरं गदो लदो दोएहं पवेस० जह० एयसमयो। एवं माण-माया-लोभेसु ओकड्डिदेसु चि ययदजहण्णकालसंभवो समयाविरोहणाणुगंतव्यो। २९२. तिण्डं पवेस० वुश्चदे-तिविहं लोभमोकड्डिय एयसमयं तिण्हं पवेसगो होदूण से काले कालगदो देवेसुप्पञ्जिय अण्णं पवेसहारणं पडिवएगो लद्धो एगसमयमेतो तिण्हं पवेसगस्स जहएणकालो । एवं लएहं पवेसगस्स वि जहण्णकालो परूवेयव्वो। परि तिविहं मायमोकड्डिय एगसमयं छण्हं पवेसगो होदूण कालगदो ति वत्तव्यं । एवं चेव णवण्हं बारसएह पि जहण्णकालपरूवणा कायया । णवरि जहाकम तिविहं माणं तिविहं च कोहमोकद्देऊण से काले कालगदो त्ति बत्तनं । एवं तेरसण्हं । णवरि पुरिसवेदमोकड्डिय एगसमयं तेरसपवेसगो होदूण से काले एगूणवीसपवेसहारण .... ... .. मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविहिमसागर जी महाराज. . . जीव लोभसंज्वलनका अपकर्पण कर एक प्रकृतिका प्रवेशक हो तदनन्तर समयमें तीन प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया। अथवा उपशमणि पर चढ़नेवाला जीव पुरुषवेद की प्रथम स्थितिका " गलाकर एक समय तक एक प्रकृतिका प्रवेशक हो तदनन्तर समयमें मरकर देवाम उत्पन्न । हुआ । इस प्रकार एक प्रकृतिके प्रवेशक्का जघन्य काल एक समयमात्र प्राप्त हुआ। $२६१. अब रो प्रकृतियोंके प्रवेशकका जयन्य काल कहते हैं। वह कैसे ? उपशमश्रेणि पर चढ़नेवाला जीव अन्तरकरणको समाप्त कर अनन्तर एक समय कम एक श्रारलि कालको बिसाफर दो प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया । फिर तदनन्तर समयमें मरकर और देवोंमें उत्पन्न हो पर्यायान्तर ( स्थानान्तर ) को प्राप्त हुआ । इस प्रकार दो प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो गया। इसी प्रकार मान, माया और लोभका अपकीरण करने पर भी प्रकृप्त जघन्य कालका सम्भव समयके अविरोधपूर्वक जान लेना चाहिए। २६२. अब तीन प्रकृतियोंके प्रवेशकका कहते है--तीन लोभोंका अपकर्षण कर एक समय तक तीन प्रकृतियोंका प्रवेशक हो तथा मर कर देवा में उत्पन्न हो अन्य प्रवेशस्थानको प्राप्त हो गया । इस प्रकार सीन प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो गया । इसी प्रकार छह प्रकृतियों के प्रवेशकका भो जघन्य काल एक समय कड़ना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि तीन प्रकारकी मायाका अपकर्षण कर एक समय तक छह प्रकृतियों का प्रवेशक हो मरा ऐसा कहना चाहिए । तथा इसी प्रकार नौ और बारह प्रकृतियोंके प्रवेशकके भी जघन्य . कालका कथन करना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि क्रमसे तीन प्रकारके मान और सीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण कर तदनन्तर समयमें मरा ऐसा कहना चाहिए । इसी प्रकार तेरह प्रकृतियोंके प्रवेशकका भी जघन्य काल कहना चाहिए। किन्तु इसनी विशेषता है कि पुरुषवेदका अपकर्षण कर एक समय तक तेरह प्रकृतियों का प्रवेशफ हो तदनन्तर समयमें उन्नीस प्रकृतियों
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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