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गा० ६२ ]
उत्तरप डिउदीरगाए ठा समुसिरा पर्याडिदि सो च
सिमोन
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परिवज्रमाणस्स किंचि खाचमस्थि
तितप्पदुष्पायामाह -
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सो कसायउवसामणादो परिवदिदां दंसणमोहणीयस्स उवसंताए श्ररिमसमए आसाणं गच्छड़ से काले मिच्छ्रत्त मोकडुमाणयस्स छब्बीसं पयडीओ पविसंनि ।
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२७५ श्रह जर सो वेध कसायउचसामणादो परिवदिदो उबसमसम्मत द्धाचरिमसमए सासणणं पडिवजड़ तो तस्स तम्मि समय पुव्युतेोब कमेण चावीसपवेसद्वाणं होण से काले मिच्छामो कड्डमाणस्स पगुवीस पवेसट्टा महोदृण मिच्छत्ते सह तिण्डमणंतावंधीणमक मपवेसेण दव्वीसं पयडीओ उदयावलियं पविसंति नि एसो एत्थतो विसेसो ।
* तदो से काले अठ्ठावीस पगडीओ पविसंति ।
२७६. सुगममेदं ।
* एदे वियप्पा कसाययसामणादो परिवदमा रागादी ।
: २७७. ए अनंतरखिदिट्ठा विषप्पा कसायोवसामखादो परिमाणमस्तिऊण परूविदा ति पयदत्यो वसंहारवकमेदं । णवरि अण्णे वि वियप्पा एत्थ संभवति तेसि स्थान होते हैं ऐसी समुत्कीर्तना करके अब दर्शनमोहके उपशान्तकालके अन्तिम समय में सम्पादन गुणको प्राप्त होनेवाले जीवके कुछ भेद है इस बातका ज्ञान करानेके लिए कहते हैं—
* यदि वह कषायोपशामनासे गिरता हुआ दर्शनमोहनीय के उपशामनके कालके अन्तिम समय में सासादन गुणस्थानको प्राप्त होता है तो तदनन्तर समय में मिथ्यात्व का अपकर्षण करनेवाले उसके छब्बीस प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं।
२७५ यदि Est जब कषायोपशामना से गिरता हुआ उपशमसम्यक् के काल के अन्तिम समय में सासादनगुणको प्राप्त होता है तो उसके उस समय में पूर्वोक्त क्रमसे ही बाईस प्रकृतियों का प्रवेशस्थान होकर अनन्तर समय में मिथ्यात्वका अपकर्षण करते हुए पच्चीस प्रकृतिका प्रवेशस्थान न होकर मिथ्यात्वके साथ तीन अनन्तानुबन्धियों का युगपत् प्रवेश होनेके कारण छब्बीस प्रकृतियाँ उद्यावलिमें प्रवेश करती हैं यह यहाँ पर विशेष है ।
* इसके बाद तदनन्तर समयमें अट्ठाईस प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं ।
३ २७६. यह सूत्र सुगम हैं ।
विशेषार्थ — इस मिध्यादृष्टि जीवके प्रथम समय में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अपकर्षण होकर उदयावलिके बाहर निक्षेप होता है और दूसरे समय में उन सहित हाईस प्रकृतियाँ उदद्यावलिमें प्रवेश करती हैं यह इस सूत्रका भाव है ।
* ये विकल्प कषायोपशामनासे गिरनेवाले जीवकी अपेक्षा होते हैं ।
$ २७०. ये पूर्व में कहे गये विकल्प कषायोपशामनासे गिरनेवाले जीवका आश्रय लेकर कहे गये हैं इस प्रकार यह प्रकृत अर्थका उपसंहार वचन है। किन्तु इतनी विशेषता है कि