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________________ मी सविधिसागर जी १२४ जयधवलासहिदे कसायपाछुडे [बेगो ताणुबंधीणमण्णदरपवेसरिणयमो ? ण, सासणगुणस्स तदुयाविणाभाविचादो । कधं पुन्बमसंतस्साणताणुबंधिकसायत्स तत्धुदयसंभवो ? ण, परिणामपाहम्मेण सेसकसायदव्यस्स तकालमेव तदायारेण परिणामिय उद्यदसणादो। तदो आसाणगमणादो से काले पणुवीसं पयडीओ षविसंति । किं कारणं १ उदयावालियबाहिरदिदति विहाणंताणुबंधीणं तम्मि समए उदयविलियम्मतरपवसदसैणादो। * जाधे मिच्छत्तमुदोरेदि ताधे छब्बीसं पयडीओ पविसंति | २७३. कमेए। तेणेव मिच्छत्ते उदीरिजमाणे मिच्छरेण सह छब्बीसं पयडीणमुदयावलियपवेसस्स परिप्फुडमुवलंभादो । णवरि पढमसमयमिच्छाइट्टी मिच्छत्तमुदीरेमाणो दसणतियमोकडिजण मिच्छचमुदयादि णिक्खिवदि । सम्मनसम्मामिच्छचाणि उदयावलियबाहिरे णिक्खियदि ति घेत्तव्यं । अदो चेव से काले तेसिमुदयावलियएनेसो अवस्संभावि ति पदुप्पायणट्ठमाह * तदो से काले महावीसं पयडीओ पविसंति । : २७४. गयस्थमेदं सुर्च | एवं ताव दुचरिमादिसमएसु सासणभावं पडिवा• मायास्स जहाकम चाबीस-पणुवीस-छब्बीस-अट्ठावीसपवेसहाराणि होति ति समुक्कित्तिय शंका--वहाँ अनन्तानुबन्धियोंकी किसी एक प्रकृतिके प्रवेशका नियम क्यों है ? समाधान--नहीं, क्योंकि सासादनगुण उसके उदयका अविनाभावी है। शंका-पूर्वमें सत्तासे रहित अनन्तानुबन्धीकषायका वहां पर उदय कैसे सम्भव है ? समाधान नहीं, क्योंकि परिणामोंके माहात्म्यवश शेष कषायोंका द्रव्य उसी समय उस रूपसे परिणमकर उसका उदय देखा जाता है। इसलिए सासादनमें जानेके बाद अनन्तर समय पच्चीस प्रकृतियां प्रवेश करती हैं, क्योंकि उदयावलिके बाहर स्थित सीन प्रकारकी अनन्तानुबन्धियोंका उस समयमें उदयावलिके भीतर प्रवेश देखा जाता है। _*जिम समय मिथ्यात्वकी उदीरणा करता है उस समय छब्बीस प्रकृति प्रवेश करती हैं। ६२७३. क्योंकि उसी जीवके द्वारा क्रमसे मिथ्यात्वकी उदीरणा करने पर मिथ्यात्यके साथ छब्बीस प्रकृतियोंका उदयावलिमें प्रवेश स्पष्ट उपलब्ध होता है। किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रथम सम्यवर्ती मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्त्रको उदीरणा करता हुश्रा तीन दर्शनमोहनीयका अपकर्षण कर मिथ्यात्वका उदय समयसे लेकर निक्षेप करता है तथा सम्यक्त्व और सम्य. ग्मिथ्यात्वका उदयावलिके बाहर निक्षेप करता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । और इसी लिए तदनन्तर समयमें उनका उदयावलिमें प्रवेश अवश्यंभावी है इस बातका कथन करने के लिए कहते हैं * इसके बाद तदनन्तर समय में अट्ठाईस प्रकृतियाँ प्रवेश करती है। ६२७४. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार सर्व प्रथम द्विचरम आदि समयों में सासादनभावको प्राप्त होनेवाले जीवके क्रमसे बाईस, पच्चीस, छब्बीस और अट्ठाईस प्रकृतियोंके प्रवेश
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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