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________________ जयभवलासहिदे कसायराहुडे वलिंगबाहिरे शिक्खित्ताणि । ता सरस पयडीओ पविसंति । * से काले एणवीसं पयडीओ पविसंप्ति | ६ २६२. दाणि सुतारण सुगमाणि । * तदो अंतोमुरोण इरिथवेदमाकडिण उदयावलियमाहिरे शिवियदि । १२. [ बेगो ७ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ९ २६३. कुढो ? पुरिसवेदोदरण चढिदत्तादो। ण न सोदएण विणा उदयादिनिक्स्वेव संभवो विष्पडिसेहादो । * से काले वीसं पयडीओ पविसंति / इ २६४. कुदो ! उदयाबलियवाहिरे णिक्खितस्स इत्थवेदस् ता उदयाच लिअंतरपसदंसणादो | * नाव जाव अंतरं ए विणस्सदि ति । १२६५. एत्तो पाए जाव अंतरं पण विणस्सदि ताव एवं चैव पवेसाणमवडिदं व्यमिदित्तं होइ | * अंतरे विणासिजमाये एवं समवेदमाकडिण उदयावलियम हिर णि विवाद | * से काले एक्कावलं पयडीओ पविसंति | बाहर निक्षेप किया । तत्र तेरह प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं । * तदनन्तर समय में उन्नीस प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं । १२६२. ये सूत्र सुगम हैं । * तदनन्तर अन्तर्मुहूर्त बाद स्त्रीवेदका अपकर्षण करके उदयानलिके बाहर निक्षेप करता है । ९ २६३. क्योंकि यह पुरुषवेदके उदयसे चढ़ा है और वोदय के बिना उदय समय से लेकर निक्षेप होना सम्भव नहीं है, क्योंकि इसका निषेध है। * तदनन्तर समय में बीस प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं । $ २६४. क्योंकि उद्यावलिके बाहर निक्षिप्त हुए श्रीवेदका तब उदद्यावलिके भीतर प्रवेश देखा जाता है । * यह स्थान तब तक रहता है जब तक अन्तरका नाश नहीं होता । ६२६५. इससे भागे जब तक अन्सरका नाश नहीं होता तब तक इस प्रवेशस्थानको अवस्थित जानना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * अन्तरका नाश करने पर नपुंसकवेदको अपकर्षित कर उदयावलिके बाहर निक्षेप करता है। * तदनन्तर समय में इक्कीस प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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