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________________ ___गा०६२] उत्तरपयडिउदाहिाठिाणसवितणापत्रासहसाच्चजी म्हाराज ११५ तं कस्स होइ ति आसंकाए. उत्तरसुत्तमाह ६ अणंताणुबंधीणमविसंजुत्तस्स उवसंतदसणमाहणीयस्स । २५२. कि कारणं ? उवसंतदंसगमोहणीयम्मि दंसणतियं मोत्तूण पणुचीसचरितमोहपयडीणमुदयावलियपवेसस्स णिप्पडियंधमुवलंभादो। एत्थाणताणुबंधीणमविसंजुत्तस्से ति विसेसणं त्रिसंजोइदाणताणुबंधिचउकम्मि पणुवीसपवेसटाणासंभवपप्पारणफलं; उवसमसम्माइद्विणा अणंताणबंधीसु विसंजोइदेसु इगिवीसपवेसट्ठाणुप्पत्तिदसणादो। स्थि अण्णस्स कस्स वि । ६ २५३. एत्तो अण्णस्स कस्स वि एदं पवेसट्ठाणं णथि । कुदा ? अविसंजोइदाएंताणुवंधिचउक्कमुत्रसमसम्माइट्टि मोचूणएणस्थ पणुवीसपवेसट्ठाणासंभवादो। चवीसं पयडीओ उदयावलियं पविसंति अणताणुबंधिणो धज्ज । २५४. चउवीससंतकम्मियवेदयसम्माइद्वि-सम्मामिच्छाइट्ठीसु तदुवलंभादो । विसंजोयणापुबसंजोगपढमसमए बट्टमाणमिच्छाइडिम्मि वि पदस्स पवेसट्ठाणस्स संभवो दट्ठन्यो । तेषीसं पयडीओ उदयावलियं पविसंति मिच्छत्तं खविदे। उपलब्ध होता है । यह स्थान किसके होता है ऐसी आशंका होनेपर भागेका सूत्र कहत है ___* यह स्थान जिसने अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना नहीं की है किन्तु दर्शनमोहनीयका उपशम किया है ऐसे उपशमसम्यग्दृष्टिके होता है। ६२५२. क्योंकि जिसने दर्शनमोहनीयकी उपशमना की है ऐस जीपक तीन दर्शनमोहनीयको छोड़कर चारित्रमोहनीयकी पच्चीस प्रकृतियोंका जदयावलिमें प्रवेश दिना रुकावटके उपलब्ध होता है। यहाँ पर 'जिसने अनन्तानुबन्धियोंका विसंयोजमा नहीं की है। यह विशेषाप जिसने अनन्तानुअन्धीचतुककी विसंयोजना की है. उसके पच्चीस प्रकृतिक प्रवेशस्थान असम्भव है, यह निष्कर्ष फलित करने के लिए दिया है, क्योंकि उपशमसम्यग्दृष्टिके द्वारा अनन्तानुबन्धियांकी विसंयोजना कर देने पर इक्कीस प्रकृतिक प्रवेशस्थानकी उत्पत्ति देखी जासी है। * यह स्थान अन्य किसीके नहीं होता | हु२५३. उक्त जीवको छोड़कर अन्य किसी जीवके यह प्रवेशस्थान नहीं होता, क्योंकि जिसने अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना नहीं की है ऐसे उपशमसम्यग्दष्टिको छोड़कर अन्यत्र पच्चीसप्रकृतिक प्रवेशस्थान असम्भव है। * अनन्तानुवन्धियोंको छोड़कर चौबीस प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं । ७२५४. क्योंकि चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले वेदकसम्याष्टि और सम्यग्मिथ्याष्टि जीवांके यह स्थान उपलब्ध होता है। विसंयोजनापूर्वक संयोगके प्रथम समयमें विद्यमान मिथ्यादृष्टि जीवके भी इस प्रवेशस्थानकी सम्भावना जाननी चाहिए। * मिथ्यात्वका क्षय होनेपर तेईस प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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