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________________ ११४ मार्गदर्शक:-आचे जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो सत्तावीसपयडिसमुदायप्पयमणणं पवेसट्ठाणमुप्पञ्जदि ति समुकित्तिदं होइ । एस्थ वि यदिरेगमुहेण पयडिणिसो को त्ति दह्रन्यो । छन्वीसं पयडीओ उदयायलिय परिसंति सम्मत्त-सम्मामिच्छुत्तेसु उव्वेल्सिवेसु। २५०. पुव्वुत्तअट्ठावीसपवेसटाणादो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तेसु जहाकममुम्बेल्लि- .. देसु थ्वीसाए पवेसवारणमुप्पादि ति भणिदं होइ । एण केवलमुन्बेल्लिदसम्मत्तसम्मामिच्छत्तस्सेव, किंतु अण्णादिमिच्छाइडिणों वि बच्चीसाए पवेसट्ठाणमत्थि ति घेत्तव्वं । अट्ठावीस-सत्तावीसाणमएणदरसंतकम्मियमिच्चाइटिणा वा उवसमसम्मत्ताहिमुहेणंतरं कादूण सम्मत्त-सम्मामिच्छताणमावलियमेत्तपढमहिदीए गलिदाए छब्बीसपवेसट्ठाणमुवलब्भइ । उवसमसम्माइडिया पणुवीसपवेसगेण मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छताणमण्णदरे ओकड्डिदे सासणसम्माइट्ठिणा वा मिच्छत्ते पडियण्णे एयसमयं छन्वीसाए पवेसट्ठाणमुवलब्भइ । णवरि सुत्ते सम्मत्त-सम्मामिच्छतेमु उन्धेल्लिदेसु त्ति णिद्देसो उदाहरणमेत्तो, तेणेदेसि पि पयाराण संगहो कायव्यो । ॐ पणुवीस पयडीओ अक्यालिग विझति दसपतियं मोत्तण । २५१. कसाय-णोकसायफ्यमणं उदयायलियपवेसस्स कत्थ वि समुवलंभादो । करने पर सत्ताईस प्रकृनिसमुदायात्मक अन्य प्रवेशस्थान उत्पन्न होता है ऐसा इस सूत्रद्वारा कहा गया है। यहाँ पर भी व्यतिरेकमुखसे प्रकृतिनिर्देश किया है ऐसा जानना चाहिए । * सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करने पर छब्बीस प्रकृतियाँ उदद्यावलिमें प्रवेश करती हैं। + २५०. पर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृतिक प्रवेशस्थानमेंसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी क्रमसे उद्वेलमा कर देने पर छचीस प्रकृतिक प्रवेशस्थान उत्पन्न होता है. यह उक्त कथनका तात्पर्य है । जिसने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना की है केवल ऐसे जीवके ही नहीं किन्तु अनादि मिथ्याष्टिके भी छब्बीसप्रकृतिक प्रवेशस्थान होता है ऐसा यहाँ प्रहण करना चाहिए। अथवा अट्ठाईसप्रकृतिक और सत्ताईसप्रकृतिक इनमेसे अन्यतर सत्कर्मवाले उपशम. सम्यक्त्वके अमिमुख हुए मिथ्याष्टिके द्वारा अन्तरकरण करके सम्यक्त्व और सम्यग्मिय्यात्वकी श्रावलि प्रमाण प्रथम स्थितिके गला देने पर छब्बीसप्रकृतिक प्रदेशस्थान प्राप्त होता है। पच्चीस प्रकृत्तियों के प्रवेशक उपशमसम्यग्दृष्टि द्वारा मिथ्यात्व सम्यक्त्व और सम्यग्मिन्यात्व इनमेंसे किसी एक प्रकृतिका अपकर्षण करने पर अथवा सासादनसम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वको प्राप्त होने पर एक समय तक छब्बीस प्रकृतिक प्रवेशस्थान उपलब्ध होता है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सूत्र में 'सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उझेलना करने पर यह वचन उदाहरणमात्र है, इसलिए इन प्रकारोंका भी संग्रह करना चाहिए। ___ *दर्शनमोहनीयत्रिकको छोड़कर पच्चीस प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं। ६२५१. क्योंकि कषाय और नोकषायोंकी प्रकृतियोंका उदयावलिमें प्रवेश कहीं पर भी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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