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गा० ६२ ]
सरपयडिउदीरणाए वडिला
अप० सव्वपदा भयशिखा । भंगा २६ । एवं जाव० ।
$ २३६. भागाभागापु० दुविहो णि० श्रोषे० प्रादेसे० । श्रघेण संखे० भागब-हाण० सव्वजी० के० ? असंखे० भागो । अडि० असंखेजा भागा । सेसमरणंतभंगो । एवं तिरिक्खा० । आदेसेण णेरइय० श्रत्रुट्टि० असंखेजा भागा | सेसमसंखे ०मार्गदर्शक आचार्य श्री देव भवभागो । एवं सुवणेरड्य० सव्त्रपंचि०तिरिक्ख-मरपुस-ममपेज राजिदा ति । मणुसपज ० - मधुमिणी- सव्यदेवा० बडि ० संखेजा भागा। सेसपदा संखे० भागो | एवं जाव० ।
१ २३७. परिमाणा० दुरिहो णि० श्रोषेण आदेसेण । श्रघेण संखे० भागवड्डिहाणि द्वि० केत्तिया ? यता । संखे० गुणवड्डि के ? असंखेजा । संखे० गुणहाणिअवस० के ० ? संखेजा । आदेसेण सव्यणेरड्य० पंचिदियतिरिकख अपज ०-मरपुरा चपा सव्वदेवा भुजगारभंगो। तिरिक्खेसु सुच्चपदा ओघं । पंचि०तिरिक्खतिए सन्त्रपदा केतिया : असंखेजा | मणुसेसु संखे० भागवडि- हाखि अडि० केति० १ असंखे ।
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है। कदाचित् ये हैं और नाना संख्यातगुणवृद्धिके उदीरक हैं। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पद भजनीय हैं। भंग २६ होते हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ पचेन्द्रिय तिर्यवित्रिक में तीन पद भजनीय हैं, इसलिए ध्रुव भंगके साथ २७ भंग होते हैं। तथा मनुष्यत्रिक में पाँच पद भजनीय हैं, इसलिए घुष भंगके साथ २४३ भंग होते हैं। शेष कथन स्पष्ट ही है।
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$ २३६. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है – ओघ और आदेश । श्रघसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागद्दानिके उदारक जीव सब जीवों के कितने भागप्रमाण हैं ! असंख्यातर्वे भागप्रमाण हैं। अवस्थितपदके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । तथा शेष पदोंके उदीरक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार तिर्यों में जानना चाहिए । आदेश से नारकियों में अवस्थित पदके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय सिर्यच, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव और अपराजित विमानतकके देवों में जानना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त मनुष्यिती और सूर्यार्थसिद्धिके देवों में अवस्थित पदके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं और शेष पदोंके उदीरक जीव संख्यासवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
२३. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - भोष और आदेश । श्रवसे संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित पदके उदीरक जीव कितने है ? अनन्त हैं । ( संख्यातगुणवृद्धि उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। संख्यातगुणहानि और
पदके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। आदेश से सब नारकी, पचेन्द्रिय तिर्यकेच अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें भुजगार के समान भंग है । तिर्यच्चोंमें सब पदोंके aateकों का भंग ओघ के समान है। पचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्यों में संख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागहानि और अवस्थित पदके उदीरक