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________________ गा०६२] उत्तरपयदिउदीरणार भुजगारपरूपणां अप्पाबहुलं । । २१८. सुगममेदमहियारपरामरसवक्कं । 8 सव्वस्थोवा अवसव्वपचेसगा। २१९. कि कारगं ? उबसमसेढीए सव्योवसमं कादूग परिवदमाणजीवेसु चेव तदुवलंभादो । 9 भुजगारपवेसगा अपंतगुणा । : २२०. किं कारणं ? दुसमयसंचिदेइंदियजीवाणमेत्थ पहाणभावेणावलंबणादो । अप्पवरपवेसगा विसेसाहिया । मार्गदर्शवर१. स्मच्यारणो? सुमितंगपचियमनामावसम्माइटवीणं समत्तं पडिबजमाणमिच्छाइट्टीणं च जहाकम भुजगारप्पदरपरिणदाणं सस्थाणमिच्छाइट्ठीणं च सन्यस्थ मुजगारप्पदरपवेसगाणं समाणत्त संते वि सम्मत्तमुप्पाएमारणाणादियमिच्छाइट्ठीहि सह दसण चाग्निमोहक्खवयजीवाणं भुजगारेण विणा अप्पदरमेव कुणमाणाणमेस्थाहियत्रदंसणादो। अबढिवपवेसगा असंखेनगुणा। 5 २२२. किं कारणं १ अंतोमुहुत्तसंचिदेइंदियरासिस्स पहाणत्तादो । एवमोधो समत्तो। अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए भागेका प्रबन्ध लिखते हैं * अल्पबहुत्वका अधिकार है। 5२५८. अधिकारका परामर्श करानेवाला यह वचन सुगम है। * अवक्तव्यप्रवेशक जीव सबसे स्तोक हैं। २५६. क्योंकि उपशमश्रेणिमें सर्वोपशम करके गिरनेवाले जीवोंमें ही यह पद पाया जाता है। * उनसे भुजगारप्रवेशक जीव अनन्तगुणे हैं । ६२२०. क्योंकि दो समयके भीतर सश्चित हुष एकेन्द्रिय जीवोंका यहाँ पर प्रधानभावसे अबलम्बन लिया है। * उनसे अल्पतरप्रवेशक जीव विशेष अधिक है। ६२२१ क्योंकि क्रमसे भुजगार और अल्पतरपदसे परिणत हुए मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले सम्यग्दृष्टि और सम्यक्वको प्राप्त होनेवाले मिथ्यादृष्टि तथा भुजगार और अल्पतरपदमें प्रवेश करनेवाले स्वस्थान मिश्याइष्टि जीव यद्यपि सर्वत्र समान है तो भी सम्यम्बको उत्पन्न करनेवाले अनादि मिथ्यादृष्टि जीवों के साथ भुजगारके बिना केवल अल्पतरपदको ही प्राप्त ऐसे दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनिय कर्मकी क्षपणा करनेवाले जीवोंकी यहाँ पर अधिकता देखी जाती है। * उनसे अवस्थितप्रवेशक जीव असंख्यातगुणे हैं। ६ २२२. क्योंकि अन्तर्मुहूर्तके भीतर सञ्चित हुई एकेन्द्रिय जीवराशिकी प्रधानता है। इस प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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