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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिअणुभाग संकमे भंग विच
* मिच्छत्तस्स सव्वे जीवा उक्कस्साणुभागस्स असंकामया । § २१५. कुदो? मिच्छत्तुकस्साणुभागसंकामयाणमद्भुवभा वित्तादो । एसो पढमभंगो १ । * सिया असंकामया च संकामओ च ।
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९ २१६. कुदो ? सव्वजीवाणमुक्कस्साणुभागस्स असंकामयाणं मम्मे कदाइमेयजीवस्स तदुक्कस्सारणुभागसंकामयत्तेण परिणदस्सुवलंभादो । एसो विदिओ भंगो २ ।
* सिया संकासया च संकामया च ।
$ २१७. कदाइमुक्कस्साणुभागस्सासंका मयसव्वजीवाणं मज्झे केत्तियाणं पि जीवाणमुकस्सारणुभागसंकामयभावेण परिणदाणमुवलंभादो । एवमेसो तइजो भंगो ३ |
९ २१८. एवमणुक्कस्साणुभागसंकामयाणं पि तिष्ण मंगा विवज्जासेण कायव्त्रा । तं जहा – मिच्छत्ताणुकस्साणुभागस्स सव्वे जीवा संकामया १, सिया एदे च असंकामओ च २, सिया एदे च असंकामया च ३ । कथमिदं सुत्तेणाणुवइङ्कं णव्त्रदे ? ण, उक्करसभंगविचएणेव जाणाविदत्तादो ।
* एवं सेसाणं कम्माणं ।
* कदाचित् सव जीव मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके असंक्रामक होते हैं ।
§ २१५. क्योंकि मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामक जीव ध्रुव नहीं हैं । यह प्रथम
भङ्ग है १ ।
* कदाचित् नाना जीव असंक्रामक होते हैं और एक जीव संक्रामक होता है ।
§ २१६. क्योंकि उत्कृष्ट अनुभाग के असंक्रामक सब जीवोंके बीच कदाचित् मिथ्यात्व के उत्कृष्ट अनुभागके संक्रमरूपसे परिणत एक जीव उपलब्ध होता है । यह दूसरा भङ्ग है २ ।
* कदाचित् नाना जीव असंक्रामक होते हैं और नाना जीव संक्रामक होते हैं । ९ २१७. क्योंकि । कदाचित् उत्कृष्ट अनुभागके असंक्रामक सब जीवोंके मध्य में उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकरूपसे परिणत हुए कितने ही जीव उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार यह तीसरा भङ्ग ३ |
६ २१८. इसी प्रकार अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकोंके भी तीन भङ्ग पलट कर करने चाहिए । यथा— कदाचित् मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट अनुभाग के सब जीव संक्रामक हैं | कदाचित नाना जीव संक्रामक हैं और एक जीव असंक्रामक है २ । तथा कदाचित् नाना जीव संक्रामक हैं और नाना जीव असंक्रामक हैं ३ |
शंका- सूत्रमें नहीं कहा गया यह अर्थ कैसे जाना जाता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि उत्कृष्ट भङ्गविचयसे ही इसका ज्ञान करा दिया गया है । * इसी प्रकार शेष कर्मों का जानना चाहिए ।