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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
८२७. किं कारणं ९ दोण्णं उब्वेन्लणचरिमफालीए सव्वसंकमेणाणतसंकमसंभवाविसेसे विदव्वविसेसमस्सिऊण तहाभावोववत्तीदा।
* अताणु बंधिमांणे पदेस संकमट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ।. ६८२८. कुदो ? विसंजोयणाचरिमफालीए सव्वसंक्रमेण समुप्पण्णाणंत संकमट्ठा खाणं दव्वमाहप्पेण पुव्विल्लसंकमट्ठाणेहिंतो असंखेज्ञगुणत्तदंसणादो । एत्थ गुणगारो उव्वेल्लणकालो भत्थरासी गुणसंकमभागहारो च अण्णोण्णगुणिदमेत्तो ।
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* कोहे पदेससंकमट्ठाषाणि विसेसाहियाणि । * मायाए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।
* लोहे पदेस संकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।
८२. दाणि तिणि वि सुत्ताणि पयडिविसेसमेत्तकारणगन्भाणि सुगमाणिः । एवं णिरयोघो समत्तो ।
९ ८३०. एवं चैव सत्तसु पुणवीसु यव्वं, विसेसाभावाद । । एवमेतिएण पण णिरयगइ अप्पा बहुअं समाणिय संपहि तिरिक्ख- देवगईणं पि एसो चैत्र अप्पाबहुआलावो काव्वोत्ति समप्पणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ --
* एवं तिरिक्खगइ-देवगईसु वि ।
६८२७. क्योंकि दोनोंकी उद्वेलनाकी अन्तिम फालिमें सर्वसंक्रमके आश्रयसे अनन्त संक्रमस्थान सम्भव हैं, इसलिए इस दृष्टिसे कोई विशेषता नहीं है तो भी द्रव्य विशेषका श्राश्रय कर यहाँ श्रसंख्यातगुणापना बन जाता है ।
* उनसे अनन्तानुबन्धी मानमें प्रदेशसां क्रमस्थान असं ख्यातगुणे हैं ।
६८२८. क्योंकि विसंयोजनाकी अन्तिम फलिमें सर्वसंक्रमसे उत्पन्न हुए अनन्त संक्रमस्थान द्रव्यके माहात्म्यवश पूर्वके संक्रमस्थानोंसे श्रसंख्यातगुणे देखे जाते हैं । यहाँ पर गुणकार उद्वेलना कालकी अन्योन्याभ्यस्त राशि और गुणसंक्रमभागद्दार इन दोनोंको परस्पर गुणा करने पर जो राशि लब्ध वे उतना है ।
* उनसे क्रोधमें प्रदेश क्रमस्थान विशेष अधिक हैं । * उनसे मायामें प्रदेशस क्रमस्थान विशेष अधिक हैं । * उनसे लोभमें प्रदेशसक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । § ८२६. प्रकृति विशेषमात्र कारण अन्तर्गर्भ ये तीनों सूत्र सुगम हैं । इस प्रकार नरकौध समाप्त हुआ। ।
६ ८३०. इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए, क्योंकि वहाँ पर इससे अन्य कोई विशेषता नहीं है । इस प्रकार इस प्रबन्ध द्वारा नरकगतिसम्बन्धी अल्पबहुत्व को समाप्त कर अव तिर्यञ्चगति और देवगतिका यही अल्पबहुत्वालाप करना चाहिए ऐसा समर्पण करते हुए गेका सूत्र कहते हैं
* इसी प्रकार तिर्यञ्चगति और देवगतिमें भी जानना चाहिए ।