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________________ ४२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ चरिमसमयगुणसंकमादो कालं कादूण देवेसुप्पण्णपढमसमये उक्कस्सहाणिसंकमो होइ ति तदणुसारेण गुणगारपरूवणा कायव्वा । सम्मत्तस्स सव्वत्थोवा उक्कस्सिया वडूढो । ६६६६. किं कारणं ? उव्वेल्लणकालब्भंतरे गलिदसेसदव्वस्स चरिमुव्वेल्लणकंडदुयचरिमफालीए लढुक्कस्सभावत्तादो । जइ वि सव्वत्थोवमेदं तो वि असंखेज्जसमयपबद्धपमाणमिदि घेत्तव्यं, गुणसंकमभागहारगणिदुव्वेलणकालभंतरणाणागणहाणिसलागण्णोण्णब्भत्थरासीदो समयपबद्धगुणगारभूददिवडढगुणहाणीए तंतजुत्तिवलेणासंखेजगुणत्तदंसणादो। * हाणी असंखेनगुणा । ६ ६६७. कुदो ? मिच्छत्तौं गयस्स विदियसमयम्मि अधापवत्तसंक्रमेण पडिलद्धकस्सभावत्तादो । अधापवत्तभागहारादो उव्वेन्लणकालभंतरणाणागुणहाणिसलागअण्णोण्णभत्थरासीए असंखेज्जगुणत्तदंसणादो णेदमेत्यासंकणिज्जं, पढमसमयअधापवत्तसंकमादो विदियसमयअधापवत्तदव्वे सोहिदे सुद्धसेसमेत्तमुक्कस्सहाणिसामित्तविसईकयदव्यं होइ । तं च सुद्धसेसदव्यमेतियमिदि परिप्फुडं ण णञ्चदे । तदो असंखेज्जसमयपबद्धावच्छिण्णपमाणादो पुविल्लादो एदस्सासंखेज्जगुणत्त संदिद्धमिदि । किं कारण ? सुद्धसेसदबम्मि w rrrrrrrwwwwwwwww. भी कहना चाहिए, क्योंकि पूर्वोक्त कथनसे इसमें कोई विशेषता नहीं है। किन्तु इतनी विशेषता है कि उपशामक जीवके अन्तिम समयमें गुणसंक्रमके साथ मरकर देवोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें होता है, इसलिए उसके अनुसार गुणकारका कथन करना चाहिए। * सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक होती है। ६६६६. क्योंकि उद्वेलनाकालके भीतर गलकर शेष बचे हुए द्रव्यका अन्तिम उद्वेलना काण्डककी अन्तिम फालिमें प्राप्त हश्रा उत्कष्टपना प्राप्त होता है। यद्यपि यह सबसे स्तोक है तो भी यह असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि गुणसंक्रमभागहार द्वारा गुणित उद्वेलना कालके भीतर नाना गुणहानि शलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्तराशिसे समयप्रबद्धकी गुणकारभूत डेढ़ गुणहानि आगम और युक्तिके बलसे असंख्यातगुणी देखी जाती है। * उससे हानि असंख्यातगुणी है। ६६६७. क्योंकि मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवके दूसरे समयमें अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा उत्कृष्टपना प्राप्त होता है। यदि कहो कि अधःप्रवृत्तसंक्रम भागहारसे उद्वेलनाकालके भीतर नाना गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि असंख्यातगुणी देखी जाती है सो यहाँ पर ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि प्रथम समयके अधःप्रवृत्तसंक्रममें से दूसरे समयके अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्रव्यके घटाने पर जो शुद्ध शेष रहे उतना उत्कृष्ट हानिके स्वामित्व द्वारा विषय किया गया द्रव्य है और वह शुद्ध शेष बचा हुआ द्रव्य इतना है यह स्पष्टरूपसे नहीं जाना जाता है। अतएव असंख्यात समयप्रबद्धरूपसे अवच्छिन्न प्रमाणवाले पहलेके द्रव्यसे यह असंख्यातगुणा
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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