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________________ गा'५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे पदणिक्खेव ३८६.. पि कुदो ? तत्थ मिच्छाइटिवरिमावलियाए पडिच्छिददबवसेणावलियकालभंतरे वडिसंकमस्सेव दंसणादो। * अट्ठकसायाणमुक्कस्सिया वड्डी कस्स ? ६६२६. सुगमं । ॐ गुणिदकम्मसियस्स सव्वसंकामयस्स । ६६३० गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सबलहुं खवणाए अब्भुट्ठिय सव्वसंकमेण परिणदम्मि पयदकम्माणमुक्कस्सिया वड्डी होइ, तत्थ सव्वसंकमेण किंचूणदिवड्डगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धाणं पयदवविसरूवेण संकंतिदसणादो। * उफस्सिया हाणी कस्स ? ६६३१. सुगमं । * गुणिदकम्मसियो पढमदाए कसायउवसामणडाए जाधे दुविहस्स कोहस्स चरिमसमयसंकामगो जादो, तदो से काले मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्कस्सिया हाणी। ६६३२. 'दुविहस्स- कोहस्स' अट्ठसु कसाएसु दुविहस्स ताव कोहस्स पयदुक्कस्सहाणिसामित्तमेदेण सुत्तेण णिद्दिढं। तं जहा–गुणिदकम्मंसियो अण्णाहियगुणिदकिरियाए शंका-यह भी कैसे ? समाधान—क्योंकि वहाँ पर मिथ्यादृष्टि जीवकी अन्तिम आवलिमें संक्रामक हुए द्रव्यके कारण एक आकलि कालके भीतर वृद्धिका संक्रम ही देखा जाता है। * आठ कषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? . ६६२६. यह सूत्र सुगम है। * सर्वसंक्रामक गणितकर्मा शिक जीवके होती है। ६६३०. गुणितकर्मा शिकलक्षणसे आकर अतिशीघ्र क्षपणाके लिए उद्यत हो सर्वसंक्रमरूपसे परिणत होने पर प्रकृत कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है, क्योंकि वहाँ पर सर्वसंक्रमके द्वारा कुछ कम डेढ़ गुणहानिमात्र समयप्रबद्धोंका प्रकृत वृद्धिरूपसे संक्रम देखा जाता है। * उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ६६३१. यह सूत्र सुगम है। * जो गुणितकर्मा शिक जीव सर्व प्रथम कषायोंके उपशामना कालके भीतर जब दो प्रकारके क्रोधका अन्तिम समयवर्ती संक्रामक हुमा और उसके बाद मर कर देव हुआ उस प्रथम समयवर्ती देवके उत्कृष्ट हानि होती है। ६६३२. 'दुविहस्स कोहस्स' इस पदका निर्देश कर सर्व प्रथम आठ कषायोंमेंसे दो प्रकारके क्रोधके प्रकृत उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व इस सूत्र द्वारा निर्दिष्ट किया गया है। यथा-कोई एक
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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