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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ ० संका ० णिय० अत्थि भुज० संका० भय णिजा । बारसक० ३५६ अत्थि । अनंतागु०४ अप्प ०२ पुरिसवे ० छण्णोक० देवोधं । एवं जात्र० । * णाणाजीवेहि कालो एदाणुमाणिय ऐदव्वो । ६५२३. एदेण सुत्तेण णाणाजीवेहि कालो भंगविचयादो साहिऊण वेदव्यो ति सिस्साणमत्थसमपणा कया होइ। ण केवलं कालागुगमों चेत्र दव्वो, किंतु भागाभाग-परिमाण -खेत-पोसणाणि वि एदाणुमाणियं दव्वाणि; सुत्तस्सेदस्स देसामा सयभावेणावगमादो । तदो उच्चारणावसेण तेसिमेत्थागमं कस्सोमो । तं जहाभागाभागा गमेण दुविहो णिद्द सो ओघादेस भेएण | ओघेण मिच्छ० सम्म० सम्मामि० अप्प ० का ० सव्वजीव० केवडिओ भागो ? असंखेज्जा भागा। सेसपदसंका ० सव्वंजी ० केव०-भागो ? असंखे० भागो । सोलसक० -भय- दुगु छा० अवत्त० सव्त्र ० के ० १ अनंतभागो । अडि० असंखे ० भागो । अप्प० संका ० संखे ० भागो । भुज० संका० संखेजा भागा । इत्थवेद-हस- दि० अवत्त० संका० अनंतभागो । भागो । अप्प ० संका ० संखेजा भागा । एवं पुरिसवे ० । णवरि अत्तभागो । णवुंसयवे ० -अरदि-सोग० अवत्त ० संका० से हैं । अनन्तानुबन्धी चतुष्कके अल्पतर संक्रामक नाना जींव नियमसे हैं । भुजगार संक्रामक जीव भजनीय हैं । बारह कषाय, पुरुषवेद और छह नोकषायोंका भङ्ग सामान्य देवों के समान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । भुज० संका ० के ० १ संखे ० अवट्ठि ० संका ० के ० ? सव्वजी० के० १ अनंतभागो । — * नाना जीवोंकी अपेक्षा काल इससे अनुमान करके ले जाना चाहिए । 1 ६५.२३. इस सूत्र से नाना जीवोंकी अपेक्षा काल भङ्ग विचयके अनुसार साधकर ले जाना चाहिए । इस प्रकार शिष्योंके लिए अर्थकी समर्पणा की गई है। केवल कालानुगम ही नहीं ले जाना चाहिए किन्तु भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शन भी इससे अनुमान कर ले जाना चाहिए, क्योंकि इस सूत्र को देशामर्षक भाव से अवस्थित स्वीकार किया गया है । इसलिए उच्चारणा के अनुसार उनका यहाँ पर अनुगम करते हैं। यथा-भागाभागानुगमसे निर्देश ओघ और आदेश के भेदसे दो प्रकारका है । श्रघसे मिध्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के अल्पतर संक्रामक जीव सब जीवों के कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । शेष पदोंके संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। सोलह कषाय, भय और जुगुप्सा के वक्तव्यसंक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं | अवस्थित संक्रामक जीव श्रसंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अल्पतर संक्रामक जीव संख्यातवें भाग प्रमाण हैं । भुजगार संक्रामक जीव संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । स्त्रीवेद, हास्य और रतिके 1 वक्तव्य संक्रामक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं । भुजगार संक्रामक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अल्पतर संक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार पुरुषवेद की अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अवस्थित संक्रामक जीव कितने हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । नपुंसकवेद, अरति और शोकके अवक्तव्य संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने मागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । भजगार संक्रामक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? १. 'य' ता० ।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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