SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ सिया एदेच, भुजगारसंकाममो च, अवडिवसंकामगो च, अवतव्यसंकामगो च। ६५११. तं जहा-सिया एदे च भुजगारसंकामगो च ? कदाइमप्पयरसंकामएहि सह भुजगारपजायपरिणदेयजीवसंभवोवलंभादो। सिया एदे च अवढिदसंकामगो च; पुग्विन्लेहि सह कामहिमिर अवविदपरिणामपरिणदेय-जीवसंभवोविरोहादो २। सिया एदे च अवत्तव्वसंकामगो च; कयाईधुवपदेण सह अवत्तव्वसंकमपन्जाएण परिणदेयजीवसंभवे विप्पडिसेहाभावादो ३ । एवमेयवयणेण तिण्णि भंगा णिहिट्ठा । एदे चेव बहुवयणसंबंधेण वि जोजेयव्वा । एवमेदे एयसंजोगभंगा परूविदा । संपहि एदे चेव दुसंजोगतिसंजोगवियप्पेहि सत्तावीसभंगसमुप्पत्तीए णिमित्तं होति ति जाणावणहमिदमाह । * एवं सत्तावीसभंगा। ६ ५१२. एवमेदेण कमेण सत्तावीसभंगा उप्पाएयव्वा । तेसिमुच्चारणा सुगमा । सम्मत्तस्स सिया अप्पयरसंकामया च असंकामया च णियमा। ६५१३. सम्मत्तस्स अप्पयरसंकामया णाम उव्वेल्लणाणमिच्छादिविणो असंकामया च वेदगसम्माइट्ठिणो सव्वे चे; तेसिमेय पाहणियादो । तेसिमुभएसिं णियमा अस्थित्त * कदाचित् ये जीव हैं और एक एक भुजगार संक्रामक, अवस्थित संक्रामक और अवक्तव्य-संक्रामक जीव है। ६५११. यथा-कदाचित् ये जीव हैं और एक भुजगार संक्रामक जीव है, क्योंकि कदाचित् अल्पतर संक्रामक जीवोके साथ भुजगार पर्यायसे परिणत हुआ एक जीव सम्भव रूपसे उपलब्ध होता है। कदाचित् ये जीव हैं और एक अवस्थित संक्रामक जीव है, क्योंकि पूर्वोक्त जीवोंके साथ कदाचित् अवस्थित पर्यायसे परिणत हुए एक जीवके सम्भव होनेमें कोई विरोध नहीं है ।। कदाचित् ये जीव हैं और एक प्रवक्तव्य संक्रामक जीव है, क्योंकि कदाचित् ध्रुवपदके साथ प्रवक्तव्य संक्रामक पर्यायसे परिणत हुए एक जीवके सम्भव होनेमें कोई निषेध नहीं है ३ । इस प्रकार एक वचनके द्वारा तीन भङ्ग निर्दिष्ट किये गये हैं। तथा ये ही बहुवचनके साथ मी लगा लेने चाहिए। इस प्रकार ये एक संयोगी भङ्ग कहे । अब ये ही द्विसंयोगी और त्रिसंयोगी विकल्पोंके साथ सत्ताईस भङ्गों की उत्पत्तिमें निमित्त होते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए यह सूत्र कहते हैं * इस प्रकार सत्ताईस भङ्ग होते हैं। ६५१२. इस प्रकार इस क्रमसे सत्ताईस भङ्ग उत्पन्न करने चाहिए। उनकी उच्चारणा सुगम है। . * सम्यक्त्वके कदाचित् अल्पतर संक्रामक और असंक्रामक जीव नियमसे हैं। ६५१३. सम्यक्त्वके अल्पतर संक्रामक उद्वेलना करनेवाले मिथ्यादृष्टि जीव और असंक्रामक सभी वेदक सम्य दृष्टि जीव होते हैं, क्योंकि उनकी यहाँ पर प्रधानता है। उन दोनों प्रकारके जीवों का नियमसे अस्तित्व है यह सूत्र द्वारा जतलाया गया है। यदि ऐसा है तो यहाँ पर स्यात् १.कया ता
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy