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________________ ३३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ कालभंतरे चेवाणताणुबंधिचउक्कं विसंजोइय सव्वलहुं संजुतस्स बंधावलियादिक्कतपढमसमए अवत्तव्यसंकमस्सादी दिट्ठा । तदो सव्वचिरमंतरिदूणद्धपोग्गलपरियट्टावसाणे अंतोमुहुत्तावसेसे सम्मत्तमुप्पाइय विसंजोयणापुवं संजुत्तस्स बंधावलियादिक्कमे लद्धमंतरं होइ । पारसकसाय-पुरिसवेद-भयदुगुंछाणं भुजगारप्पयरसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ६४५६. सुगमं । . . * जहणणेण एयसमओ। ६ ४५७. कुदो ? भुजगारप्पदराणमणप्पिदपदेणेयसमयमंतरिदाणं तदुवलद्धीदो। . * उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेचविभागो। ६ ४५८. कुदो ? भुजगारप्पयराणमण्णोण्णुक्कस्सकालेणावद्विदकालसहिदेणंतरिदाणमुक्कस्संतरस्स तप्पमाणतोवलंभादो। * अवडिवसंकामयंतरं केवचिरं कालादोहोदि ? ६४५६. सुगम । * जहणणेण एयसमओ। उपशमसम्यक्त्व कालके भीतर ही अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करके अति शीघ्र संयुक्त हुए जीवके बन्धावलिके व्यतीत होनेके प्रथम समयमें अवक्तव्यसंक्रमका प्रारम्भ दिखालाई दिया। उसके बाद बहुत दीर्घ काल तक उसका अन्तर करके अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कालके अन्तमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर सम्यक्त्वको उत्पन्न करके विसंयोजनापूर्वक संयुक्त हुए जीवके बन्धावलिके व्यतीत होने पर पुनः अवक्तव्य संक्रम होनेसे उसका उक्त अन्तरकाल प्राप्त हो जाता है। * बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार और अल्पतर संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६४५६. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल एक समय है। ६४५७. क्योंकि अनर्पित पद द्वारा एक समयके लिए अन्तरित किये गये भुजगार और अल्पतर पदोंका जघन्य अन्तर एक समय उपलब्ध होता है। * उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४५८. क्योंकि अवस्थित पदके कालके साथ एक दूसरेके उत्कृष्ट कालसे अन्तरको प्राप्त हुए भुजगार और अल्पतर संक्रमका उत्कृष्ट अन्त उक्त कालप्रमाण उपलब्ध होता है। * अवस्थित संक्रामकका अन्तर काल कितना है ? ६४५६. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल एक समय है।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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