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________________ गा०५८] उत्तरपयडिपदेस संकमे भजगारो ३१६ * जहएणण पयसमो । ६३६४. तं कधं ? अण्णवेदबंधादो एयसमयमित्थिवेदबंधं कादूण तदणंतरसमए पुणो वि पडिवक्खवेदबंधमाढविय बंधावलियवदिक्कंतसमए कमेण संकामेमाणयस्स एयसमयमेत्तो इथिवेदस्स भुजगारसंकमकालो जहण्णकालो होइ। * उकस्सेण अंतोमुहुत्तं । ६ ३६५. सगबंधगद्धाए सवत्व बंधावलियादिक्कतसमयपबद्धसंकमवसेण तेत्तियमेतकालं भुजगारसिद्धीए णिव्याहमुबलंभादो । अधवा गुणसंकमकालो धेत्तव्यो। * अप्पयरसंकमं केवचिरं कालादो होदि ? ६३६६. सुगम । * जहणणेण एगसमो । (३६७. तं जहा-इत्थिवेदं बंधमाणो एगसमयं पडिवक्सपयडिबंधं कादण पुणो वि इथिवेदं चेत्र बंधिय बंधावलियवदिक्कमे एगसमयमष्पयरसंकामगो जादो लद्धो एगसमयमेत जहण्णकालो। * उक्कस्सेण घेछावहिसागरोवमाणि संखेनवस्सभहियाणि । * जघन्यकाल एक समय है । ६३६४. शंका-वह कैसे ? समाधान—क्योंकि अन्य वेदके बन्धके बाद एक समय तक स्त्रीवेदका बन्ध करके उसके बाद दूसरे समयमें फिर भी प्रतिपक्ष वेदका बन्ध करके बन्धावलिको बिताकर अनन्तर समयमें क्रमसे संक्रमण करनेवाले जीवके स्त्रीवेदके भुजगारसंक्रमका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। __* उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । .६३६५. क्योंकि अपने बन्धक कालमें सर्वत्र ही बन्धको प्राप्त हुए समयप्रबद्धोंका बन्धावलि के बाद संक्रम होनेसे भुजगार संक्रमका उतना काल निर्वाधरूपसे सिद्ध होता हुआ उपलब्ध होता है । अथवा यहाँ पर गुणसंक्रमका काल ग्रहण करना चाहिए। * अल्पतरसंक्रमका कितना काल है ? ६३६६. यह सूत्र सुगम है। . * जघन्य काल एक समय है। ६३६७. यथा-स्त्रीवेदका बन्ध करनेवाला जीव एक समय तक प्रतिपक्ष प्रकृतिका बन्ध करके फिर भी स्त्रीवेदका ही बन्ध करके बन्धावलिके व्यतीत होने पर एक समय तक स्त्रीवेदका अल्पतरसंक्रामक हो गया। इस प्रकार एक समयमात्र जघन्य काल उपलब्ध हुआ। * उत्कृष्ट काल संख्यात वर्ष अधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है। १. 'वास' ता० ।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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