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३१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ तदुभयकालस्स तप्पमाणत्तसिद्धीए विरोहाभावादो। णवरि पुरिसवेदस्स सम्माइविम्मि तदुभयमुक्कस्सकालसंभवो दव्यो।
* अवट्ठिदसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ६ ३८८. सुगमं । * जहएणेण एयसमत्रो। , ३८६. सुगममेदं । * उकस्सेण संखेजा समया।
६३६०. संखेज्जसमए मोत्तण तत्तो उवरि संतकम्मावट्ठाणाभावेण तदणुसारिणो संकमस्स वि तहाभावसिद्धीए विरोहादो।।
ॐ अवत्तव्वसंकमो केवचिरं कालावो होवि ? ६ ३६१. सुगमं ।
ॐ जहएणुकस्सेण एयसमभो। $ ३६२. सव्योवसामणापडिवादपढमसमयादो अण्णत्थ तदसंभवणिण्णयादो।
ॐ इत्थिवेदस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि। ६३६३. सुगम ।
जीवके यथाक्रम उन दोनों के काल के उक्त प्रमाण सिद्ध होनेमें विरोध नहीं आता। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदके उक्त दोनों पदों का उत्कृष्ट काल सम्यग्दृष्टि जीवके सम्भव जानना चाहिए।
* अवस्थितसंक्रमका कितना काल है ? ६३८८. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है। ६ ३८६. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट काल संख्यात समय है।
६३६०. क्योंकि संख्यात समयको छोड़कर उससे अधिक काल तक सत्कर्मका समानरूपसे अवस्थानका अभाव होनेसे उसके अनुसार होनेवाले संक्रमका भी उससे अधिक काल तक सिद्ध होनेमें विरोध आता है। ..
* अवक्तव्यसंक्रमका कितना काल है ? ६ ३६१. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
६३६२. क्योंकि सर्वोपशामनासे गिरनेके प्रथम समयके सिवा अन्यत्र उसका होना असम्भव है ऐसा निर्णय है।
* स्त्रीवेदके भुजगारसंक्रमका कितना काल है ? ६३६३. राह सूत्र सुगम है।