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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो
३०६ सव्वेसु चेव अप्पयरसंकमं कादूण पुणो पढमावलियचरिमसमए भुजगारावट्ठिदाणमण्णयर संकमपज्जायं गदो लद्धो दुसमयूणावलियमेत्तो । मिच्छत्तप्पयरसंकम कादूण समयूणावलियमेतो अप्पयरकालवियप्पो किण्ण परूविदो ? ण, तहा कीरमाणे अप्पयरकालस्स ववच्छेदकरणोवायाभावादो।
* अधवा अंतोमुहुत्तं ।।
६ ३५०. तं जहा–बहुसो दिट्ठमग्गेण मिच्छाइट्ठिणा वेदगसम्मत्तमुप्पाइदं । तस्स पढमावलियचरिमसमए पुव्वुत्तेण णाएण भुजगारसंकम कादण तदो अप्पयरसंकमं पारमिय सव्वजहण्णेण कालेण मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणमण्णदरगुणं गयस्स जहण्णेणंतोमुहुत्तपमाणो अप्पयरकालवियप्पो लब्भदे।।
8 तदो समयुत्तरो जाव छावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
६ ३५१. तदो सबजहगंतोमुहुत्तमेत्तप्पदरकालादो समउत्तरादिकमेणप्पयरसंकमकालवियप्पो णिरंतरमणुगंतव्यो जाव सादिरेयछावद्विसागरोवममेत्तो तदुक्कस्सकालो समुवलद्धो ति । तत्थ सवपच्छिमवियप्पं वत्तइस्सामो । तं जहा–अणादियमिच्छाइट्ठिणा सम्मत्ते समुप्पाइदे अंतोमुहुत्तकालं गुणसंकमो होदि, तदो विज्झादे पदिदस्स णिरंतरमप्पयरसंकमो होदूण गच्छदि जावंतो मुहुत्तमेत्तुवसमसम्मत्तकालसेसो वेदगसम्मत्तकालो च देसूण छावढिसागरोवममेत्तो त्ति । तत्थंतो मुहुत्तसेसे वेदगसम्मत्तकाले खवणाए अब्भुट्ठिदस्सापुचभुजगार या अवस्थित इनमेंसे किसी एक संक्रमरूप पर्यायको प्राप्त हुआ। इस प्रकार मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रमका दो समय कम एक आवलिप्रमाण काल प्राप्त हुआ।
शंका-अन्तिम समयमें भी अल्पतरसंक्रमको करके अल्पतर संक्रमका एक समय कम एक प्रावलिप्रमाण काल प्राप्त किया जा सकता है वह यहाँ पर क्यों नहीं कहा ?
समाधान नहीं, क्योंकि वैसा करने पर अल्पतरसंक्रमके कालका विच्छेद करनेका कोई उपाय नहीं रहता। ___* अथवा अन्तमुहूर्तकाल है।
६३५०. यथा-जिसने बहुत बार मार्गको देखा है ऐसे मिथ्यादृष्टिने वेदकसम्यक्त्वको उत्पन्न किया वह प्रथमावलिके अन्तिम समयमें पूर्वोक्त न्यायके अनुसार भुजगारसंक्रमको करके अनन्तर अल्पतरसंक्रमका प्रारम्भ करके सबसे जघन्य काल द्वारा मिथ्यात्व या सम्यग्मिथ्यात्व इनमेंसे किसी एक गुणस्थानको प्राप्त हुआ । इस प्रकार उसके अल्पतर कालका विकल्प जघन्यसे अन्तमुहूर्त प्रमाण प्राप्त होता है। ___ * इसके बाद एक एक समय बढ़ाते हुए साधिक छयासठ सागर काल प्राप्त होता है।
६३५१. 'तदो' अर्थात् सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कालसे लेकर एक-एक समय अधिकके क्रमसे बढ़ाते हुए अल्पतरसंक्रम कालका विकल्प साधिक छयासठ सागरप्रमाण उसका उत्कृष्ट काल उपलब्ध होने तक निरन्तरक्रमसे जानना चाहिए । अब उसमें सबसे अन्तिम विकल्पको बतलाते हैं। यथा-अनादि मिथ्यादृष्टिके सम्यक्त्वको उत्पन्न करने पर अन्तमुहूते काल तक गुणसंक्रम होता है। उसके बाद विध्यातसंक्रमको प्राप्त हुए उसके निरन्तर अल्पतरसंक्रम अन्समुहूर्तप्रमाण उपशम
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