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________________ २.१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ * अपचक्खाणमाणे जहएणपदेससंकमो असंखेजगुणो। ६ २५०. कुदो ? बेछावद्विसागरोवमपरिभमणेण विणा लद्धजहण्णभावत्तादो। * कोहे जहण्णपदेससंकमो विसेसाहित्रो। * मायाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * लोहे जहषणपदेससंकमो विसेसाहिो । ॐ पञ्चक्खाणमाणे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। 8 कोहे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * मायाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिो। ॐ लोभे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६ २५१. एत्थ सव्वत्थ विसेसपमाणमावलि० असंखे० भागेण खंडिदेयखंडमेत्तं । ॐ बुंसयवेदे जहएणपदेससंकमो अणंतगुणो। ६ २५२. जइवि तिपलिदोवमाहियबेछावढिसागरोवमाणि परिगालिय णqसयवेदस्स जहण्णसामित्तं जादं, तो वि पुचिल्लदव्वादो अणंतगुणमेव णवंसयवेददव्यं होइ; देसघाइ पडिभागियत्तादो। ॐ इत्थिवेदे जहण्णपदेससंकमो असंखेजगुणो । * उससे अप्रत्याख्यानमानका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है। ६२५०. क्योंकि दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण किये बिना इसका जघन्यपना प्राप्त होता है। * उससे अप्रत्याख्यानक्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अप्रत्याख्यानमायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अप्रत्याख्यानलोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानमानका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानक्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानमायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानलोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६२५१. यहाँ पर सर्वत्र विशेष अधिकका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भागसे भाजित कर जो एक भाग लब्ध आवे उतना है । ___* उससे नपुसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम अनन्तगुणा है । .६२५२. यद्यपि तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागरको गलाकर नपुंसकवेदका जघन्य स्वामित्व उत्पन्न हुआ है तो भी पहलेके द्रव्यसे नपुंसकवेदका द्रव्य अनन्तगुणा ही है, क्योंकि प्रतिभाग होकर इसे देशघातिका द्रव्य मिला है। * उससे स्त्रीवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यात गुणा है ।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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