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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* माणसंजलणे उक्कस्संपदेससंकमो विसेसाहिओ । ९ २३६. केत्तियमेत्तो विसेसो १ पुरिसवेददन्त्रस्स सादिरेयचउब्भागमेत्तो । * कोहसंजलणे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ । * मायासंजलणे उक्कस्सपदेस संक्रमो विसेसाहिओ ।
* लोहसंजलणे उक्कस्स पदेस संकमो विसे साहिओ ।
[ बंधगो ६
२३७. दाणि मुत्ताणि पयडिविसेसमेत कारणपडिबद्धाणि सुबोहाणि । एवं रियोघो परूविदो | एवं चैव सत्तसु पुढवीसु; विसेसाभावादो ।
* एवं सेसासु गदीसु दव्वं ।
९ २३८. एदेण सुत्तेण सेसगदीणमप्पा बहुअं सूचिदं । तं जहा — तिरिक्खपंचिंदियतिरिक्खतिय देवा भवणादि जाव णवगेवज्जा त्ति णिरयोघो । अणुद्दिसाणुत्तरदेवेसु एवं चेव । raft सम्म कम थि; इत्थि - गवुंसयवेदाणं पि तत्थ विज्झादसंकमो चेवेत्ति विसेसमवहारिऊणप्पा बहुअमणुगंतव्र्व्वं । मणुसतिए ओघभंगो । पंचि०तिरिक्ख- अपज्ज० मणुसअपजस पुरदो भग्णमारोह दिय प्याबहुअभंगो |
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* उससे मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
९ २३६. विशेषका प्रमाण कितना है ? पुरुषवेदके द्रव्यका साधिक चतुर्थ भागमात्र विशेष प्रमाण है।
* उससे क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
* उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
* उससे लोभसंज्वलनका उत्कष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
२३७. ये सूत्र प्रकृतिविशेषमात्र कारणसे प्रतिबद्ध हैं, इसलिए सुगम हैं। इस प्रकार सामान्यसे नारकियों में उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम अल्पबहुत्वका कथन किया । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए, क्योंकि उससे यहाँ पर अन्य कोई विशेषता नहीं है ।
* इसी प्रकार शेष गतियों में ले जाना चाहिए ।
६२३८. इस सूत्र द्वारा शेष गतियोंमें अल्पबहुत्वका सूचन किया है । यथा - सामान्य तिर्यन, पञ्चेन्द्रिय तिर्यवत्रिक, सामान्यदेव और भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रवेयक तकके देवों में सामान्य नारकियों के समान भङ्ग है। अनुदिश और अनुत्तर देवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वका संक्रम नहीं है । तथा वहाँ पर स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका भी विध्यातसंक्रम ही है । इस प्रकार इस विशेषताको जानकर अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए । मनुष्यत्रिकमें श्रोघके समान भङ्ग है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्व अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें आगे कहे जाने वाले एकेन्द्रिय सम्बन्धी अल्पबहुत्व के समान भङ्ग है ।