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________________ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं * लोभे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ। ( २३२. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । * हस्से उकस्सपदेससंकमो अणंतगुणो। ६२३३. कुदो ? सबघादिपदेसग्गं पेक्खिऊण देसघादिपदेसग्गस्साणंतगणत्ते संदेहाभावादो। ॐ रदोए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिो । ६२३४. पयडिविसेसेण। इत्थिवेदे उकस्सपदेससंकमो संखेनगुणो। ॐ सोगे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ। 8 अरदीए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिो । * णवुसयवेदे उकस्संपदेससंकमो विसेसाहियो। 8 दुगुंछाए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिो । * भए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिश्रो। ॐ पुरिसवेदे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६ २३५. एत्थ सव्वत्थ ओघाणुसारेण कारणमणुगंतव्वं । * उससे अनन्तानुबन्धीलोभका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । ६२३२. ये सूत्र सुगम हैं। * उससे हास्यका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम अनन्तगुणा है। ६२३३. क्योंकि सर्वघाति द्रव्यको देखते हुए देशघाति द्रव्यके अनन्तगुणे होनेमें सन्देह नहीं है। * उससे रतिका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । ६२३४. क्योंकि यह प्रकृति विशेष है। * उससे स्त्रोवेदका उत्कष्ट प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है । * उससे शोकका उत्कष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अरतिका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे नपुसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे भयका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६२३५. यहाँ पर सर्वत्र ओघके अनुसार कारण जानना चाहिए।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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