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सा
सिरि-जइवसहाइरियविरइय-चुण्णिसुत्तसमणिदं
सिरि-भगवंतगुणहरभडारओवइड कसा य पा हु डं
तस्स सिरि-वीरसेणाइरियविरइया टीका
जयधवला
तत्थ
बंधगो णाम छट्ठो अत्याहियारो
अणुभागभागमेतो वि जत्थ दोसस्स संभवो णत्थि । तं पणमिय जिणणाहं संकममणुभागगोयरं वोच्छं ॥१॥
जिनमें अणुके जघन्य अविभागप्रतिच्छेदके बराबर भी दोष सम्भव नहीं है उन जिननाथको नमस्कार कर अनुभागसंक्रम नामक अधिकारका कथन करता हूँ॥१॥