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________________ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे एयजीवेण अंतरं २३५ १३०. पंचिं०तिरि०अपज०-मणुसअपज. सोलसक०-भय-दुगुंछा० जह० अजह० णत्थि अंतरं। सम्म-सम्मामि०२-सत्तणोक० जह० णथि अंतरं । अजह० जहण्णु० एयस०। १३१. मणुसतिए दंसणतियस्स जह० पदेस०संका० णत्थि अंतरं । अजह. जह० एयस०, उक्क० तिगिपलिदो० पुचकोडिपुध० । अणंताणु०चउ० जह० पदे०. संका० णत्थि अंतरं। अज० जह० एयस०, उक्क० तिण्णिपलिदो० देसू० । णवकसायअट्ठणोक यि-जह०पदे०संका० णत्थि अंतरं। अजह० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । तिण्णिसंजन-पुरिसवेद० जह० पदे०संका. जह. अंतोमु०, उक्क० पुवकोडिपुध० अजह० जहण्णुक्क० अंतोमु० । णवरि मणुसिणी०-पुरिसवे० जह० पदे०संका० णत्थि अंतरं । अजह० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । संक्रमका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य कहा है। यह सामान्य तिर्यञ्चोंकी अपेक्षा विशेषता क स्पष्टीकरण है। पञ्चेन्द्रियतिर्यचत्रिकमें अन्य सब अन्तरकाल इसी प्रकार बन जाता है। मात्र इनकी कायस्थिति पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य होनेसे इनमें मिथ्यात्व आदि तीन प्रकृतियोंके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका उत्कृष्ट अन्तर उक्त काल प्रमाण प्राप्त होनेसे वह उतना कहा है। ६१३०. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रमका अन्तरकाल नहीं है। सम्यक्त्व, सन्यग्मिथ्यात्व और सात नोकषायोंके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। विशेषार्थ—इन जीवोंमें सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य संदेशसंक्रम भवके प्रथम समयमें प्राप्त होता है, इसलिए इनमें उक्त प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रमके अन्तरकालका निषेध किया है । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम द्विचरम काण्डकके पतनके अन्तिम समयमें और सात नोकषायों का जघन्य प्रदेशसंक्रम इनमें उत्पन्न होनेके अन्तमुहूर्त बाद प्राप्त होता है। इस कारण यतः इनमें उक्त नौ प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशसंक्रमका अन्तरकाल सम्भव न होनेसे उसका निषेध किया है और अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय प्राप्त होनेसे वह उक्त काल प्रमाण कहा है। ६१३१ मनुष्यत्रिकमें दर्शनमोहनीयत्रिकके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है । अज. घन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पूर्व कोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । अनन्तानुबन्धी चतुष्कके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। नौ कषाय और आठ नोकषायोंके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । तीन संज्वलन और पुरुषवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है, उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहर्त है।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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