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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
विसंजोए माढतो तस्स अधापवत्तकरणचरिमसमए विज्झादसंक्रमेण पयदकम्माणं जहण्णओ पदेसको हो ।
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९ ७३. एत्थ जहण्णसामित्तविसईकयदव्त्रपमाणानुगमो एवं कायव्त्रो । तं जहा - दिवड्डगुणहाणिगुणिदएइ दियसमयपबद्धं ठत्रिय अंतोमुहुत्तोवट्टिदोकड्ड कड्डणभागहारपदुप्पण्णेण अधापवत्तसंक्रमभागहारेणोवट्टिदे संजुत्तपढमसमय पहुडि अंतोमुहुत्तमेत्तकालमधापवत्तसंकमेण सेकसा एहितो पडिच्छिद । णंतारणुबंधिदव्यमुक्कड्ड गपडिभागियमागच्छइ । पुणो वेछावट्ठिसागरोवमब्भंतरगलिद सेसदव्वमिच्छामो त्ति तकालब्भंतरणाणागुणहाणिसलागाणम० गोण्णभासजणिदरासिणा तम्मि ओट्टिदे गलिद सेसदव्यं होइ । तत्तो विज्झादसंक्रमेण गददव्त्रमिच्छामो त्ति अंगुलस्सासंखेज्जभागमेत्ततब्भागहारेण ओट्टिदे जहण्गसामित्तविसईकयदव्यमागच्छदि | अहवा एत्थ वि वेछावट्टिसागरोवमाणमत्रसाणे मिच्छत्तं णेदुणंतोमुहुत्तेण पुणो वि सम्मत्तपडिलंभेण सागरोत्रम पुधत्तमेत्तकालं गालिय विसंजोयणाए अन्भुट्ठिदस्स अधापवत्तकरणचरिमसमए जहण्णसामित्तमिदि एसो वि सुत्तयाराहिप्पाओ एदम्मि सुत्ते णिलीणो त्ति वक्खाणेयव्त्रो । कथमेदं व्त्रदे ? उवरि भणिस्समाणप्पा बहुअसुत्तादो । तत्व तस्सववत्ति भणिस्सामो ।
पदेससंकमो कस्स ?
* अहं कसायाणं जहणण उसके अधःप्रवृत्तकरण के अन्तिम समयमें विध्यातसंक्रमके द्वारा प्रकृत कर्मों का जघन्य प्रदेशक्रम होता है ।
९ ७३. यहाँ पर जघन्य स्वामित्व के विषयभावको प्राप्त हुए द्रव्य के प्रमाणका अनुगम इस प्रकार करना चाहिए। यथा - डेढ़ गुणहानिसे गुणित एकेन्द्रियसम्बन्धी समप्रबद्धको स्थापितकर अन्तमुहुर्तसे भाजित श्रपकर्षण - उत्कर्षणभागहार से गुणित अधःप्रवृत्तसंक्रमभागहारसे भाजित करने पर संयुक्त होनेके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त काल तक अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा शेष कषायों में से संक्रमित हुआ अनन्तानुबन्धीका द्रय उत्कर्षणका प्रतिभागी होकर आता है । पुनः दो छयासठ सागर कालके भीतर गलित हुए शेष द्रव्यकी इच्छासे उस कालके भीतर प्राप्त हुई नाना गुणहानिशलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे उसके अपवर्तित करने पर गलित होनेके बाद शेष बचा हुआ द्रव्य आता है । पुनः उसमें से विध्यातसंक्रमके द्वारा गये हुए द्रव्यकी इच्छासे अङ्गलके असंख्यातवें भागप्रमाण उसके भागहार के द्वारा भाजित करने पर जघन्य स्वामित्व के विषयभावको प्राप्त हुआ द्रव्य आता है। अथवा यहाँ पर भी दो छयासठ सागर कालके अन्तमें मिथ्यात्वमें ले जाकर - मुहूर्त बाद फिर भी सम्यक्त्वको प्राप्त कर और सागरपृथक्त्व काल तक उसके साथ रह कर विसंयोजना के लिए उद्यत हुए जीवके अधःप्रवृत्तकरण के अन्तिम समयमें जघन्य स्वामित्व होता है । इस प्रकार यह भी सूत्रकारका अभिप्राय इस सूत्र में गर्भित है ऐसा व्याख्यान करना चाहिए । शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान — आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्व सूत्रसे जाना जाता है । उसकी उपपत्तिका कथन वहीं पर करेंगे ।
* आठ कषायोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ?