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________________ १६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ इत्थवेदं पूरेण सम्मत्तं पडिव० । पुणो अनंताणु ० चउक विसजोएदि तस्स चरिमे ट्ठिदिखंडए चरिमसमयसंकामयस्स तस्स उक्क० पदेस ० संक० । पढमसमयउबवण्णल्लयस्स ५६. पंचि०तिरिक्खअपज ० मरणुस अपज० सम्म० - सम्मामि० उक्क० पदे ० संक० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ तिरिक्खेसु उववण्णो, सव्वलहुँ सम्मत्तं पडिवण्णो, सव्बुक्कस्सियाए पूरणाए पूरेऊण मिच्छत्तं गदो, अविणट्टासु गुणसेढीसु मदो अपजत्तएसु उववण्णो तस्स उक्क० पदे०सं० | सोलसक० छण्णोक० उक्क० पदे ० संक ० कस्स ० १ जो गुणिदकम्मंसिओ संखेज्जतिरियभवं काढूण अपज्जत्तेसु उववण्णो तस्स अंतोमुहुत्तउत्रवण्णल्लयस्म तप्पा ओग्गविसुद्धस्स उक्क० पदेससंक० । तिष्णं वेदाणं उकस्सपदेससंकमो कस्स ? जो पूरिदकम्मंसिओ अपज्जत्तरसु उबवण्णो तस्स अंतोमुहुत्तं उववण्णल्लयस्स तप्पा ओग्गविसुद्धस्स तस्स उक्कस्सपदेससंकमो । § ६०. मणुसतिए औघं । णरि सम्मत उक० पदे ० संक० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ संखेज्जतिरियभत्रं काढूण तदो मरणुसेसु उत्रवण्णो सव्वलहु सम्मत्तं पडिवण्णो, सकस्सियाए पूरणाए पूरेदूण मिच्छत्तं गदो तस्स पढमस० मिच्छा० उक० पदे०सं० । अताणु ० चउक्कस्स वि एवं चेत्र मणुसेसुप्पाइय त्रिसंजोयणचरिमफालीए सामित्तं वत्तव्त्रं । § ६१. देवेसु पढमपुढविभंगो । वरि पुरिसवेद ० उक्क० पदेस ० संक० कस्स ? सम्यक्त्वको प्राप्त हो पुनः अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करता है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डका संक्रम करनेके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । ६ ५६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिभ्यात्वका ऊत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्मींशिक जीव तिर्यञ्चों में उत्पन्न होकर, अतिशीघ्र सम्यक्त्वको प्राप्त हो सबसे उत्कृष्ट पूरणा के द्वारा पूरण करके मिथ्यात्व में गया। फिर शियोंके नष्ट होने पहले मरकर अपर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । सोलह कषाय और छह नोकपायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्मशिक जीव तिर्यञ्चोंके संख्यात भव करके विवक्षित अपर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ, उत्पन्न होने अन्तर्मुहूर्तमें तत्प्रायोग्य विशुद्ध हुए उसके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। वेदोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो पूरितकर्मशिक जीव अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ, उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्तमें तत्प्रायोग्य विशुद्ध हुए उसके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । ६ ६०. मनुष्यत्रिमें धके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्मींशिक जीव तिर्यञ्चोंके संख्यात भव करके अनन्तर मनुष्योंमें उत्पन्न हो अतिशीघ्र सम्यक्त्वको प्राप्त करके तथा सबसे उत्कृष्ट पूरणाके द्वारा पुरण करके मिध्यात्वमें गया उस प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टिके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भी इसी प्रकार मनुष्यों में उत्पन्न कराके विसंयोजनाकी अन्तिम फालिके पतन के समय उत्कृष्ट स्वामित्व कहना चाहिए । § ६१. देवोंमें प्रथम पृथिवीके समान भङ्ग है । इतनी पिशेषता है कि पुरुषवेदका 'उत्कृष्ठ प्रदेश
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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