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________________ १६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ चुण्णिसुत्ताहिप्पाएण पुण सम्मामिच्छत्तविसयविज्झादगुणसंकमभागहारो अंगुलस्सासंखेजभागमेत्तो, उवरि भणिस्समाणुकस्सहा िसामितसुत्तबलेग तहाभूदाहिप्पायसिद्धीदो । तम्हा दोण्हमेदेसिमहिप्पायाणं थप्पभावेण वक्खाणं कायव्यं । सोलसक०-छण्णोक० उक० पदेससंकम० कस्स ? अण्णद० गुणिदकम्मंसियस्स जो अंतोमुहुत्तकम्मं गुणेहिदि ति सम्मत्तं पडिवण्णो। पुणो अणंताणु०चउक्क बिसंजोएदि तस्स विसंजोएंतस्स चरिमविदिखडयं चरिमसमयसंकामयस्स उक्क० पदे०संक० । तिहं वेदाणमुक्क० पदे० संक० कस्स ? अण्णद. जो पूरिदकम्मंसिओ णेरइएसु उववण्णो अंतोमु० सम्मत्तं पडिवण्णो, पुणो अणंताणु०चउक्त विसंजोएदि तस्स चरिमद्विदिखंडयचरिमसमयसंकामयस्स उक्क० पदे०संक० । एत्थ विज्झादसंकमेणिस्थि-णवुसयवेदाणमुक्कस्ससामित्तविहाणे उच्चारणाहिप्पाओ जाणिय वत्तव्यो, अण्णहा मिच्छट्ठिम्मि अधापवत्तसंकमेण तदुक्कस्ससामित्ते लाहदसणादो । एवं सत्तमाए । ६५७. पढमाए जाव छट्टि ति मिच्छ०-सम्मामि० उक० पदेससंक० कस्स ? अण्णद. जो गुणिदकम्मंसिओ संखेजतिरियभवे अदिच्च अप्पप्पणो णेरइएसुववण्णो अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो, सव्वुक्वस्सियाए पूरणद्धाए पूरिदण से काले विज्झादं पडिहिदि त्ति तस्स उक्क० पदे०संक० । सम्मत्त० सो चालायो। णवरि विज्झादं पडिदूण अंतोमु० अभिप्रायसे तो सम्यग्मिथ्यात्वविषयक विध्यात और गुणसक्रम भागहार अङ्गलके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि ऊपर कहे जानेवाले उत्कृष्ट हानिसम्बन्धी स्वामित्वविषयक सूत्रके बलसे उस प्रकारके अभिप्रायकी सिद्धि होती है, इसलिए इन दोनों ही अभिप्रायोंको स्थापित करके ब्याख्यान करना चाहिए। सोलह कषाय और छह नोकषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर गुणितकमांशिक जीव अन्तमुहर्त में कर्मो को गुणितकांशिक करेगा । किन्तु इसी बीच सम्यक्त्वको प्राप्त हो अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करता है उस विसंयोजना करनेवाले जीबके अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रमण करते हुए उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। तीन वेदोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर पूरितकमांशिक जीव नारकियोंमें उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूतमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । पुन। जो अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करता है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रमण करते हुए उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। यहाँ पर विध्यातसंक्रमके द्वारा स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करने पर उच्चारणाका अभिप्राय जानकर कहना चाहिए, अन्यथा मिथ्यादृष्टि जीवमें अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा उनके उत्कृष्ट स्वामित्वके प्राप्त करनेमें लाभ देखा जाता है। उसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए । ६५७. पहिलीसे लेकर छटी पृथिवी तकके नारकियोंमें मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितका शिक जीव संख्यात तिर्यञ्चभवोंको उल्लंघन कर अपने अपने नारकियोंमें उत्पन्न हो अम्तमुहूर्तमें सम्ययत्वको प्राप्त हुआ। अनन्तर सबसे उत्कृष्ट पूरणकालके द्वारा पूरण करके अनन्तर समयमें विध्यातको प्राप्त करेगा उसके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । सम्यक्त्वका वही आलाप है । इतनी विशेषता है कि विध्यातको प्राप्त करके अन्त
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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