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________________ गा०५८) उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्त १७६ ॐ गुणिदकम्मसिएण सत्तमाए पुढवीए णेरइएण मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेससंतकम्ममंतोमुहुत्तेण होहिदि त्ति सम्मत्तमुप्पाइदं, सव्वुक्कस्सियाए पूरणाए सम्मत्तं पूरिदं, तदो उवसंतडाए पुण्णाए मिच्छत्तमुदीरयमाणस्स पढमसमयमिच्छाइडिस्स तस्स उक्कस्सो पदेससंकमो। ६३६. एत्थ गुणिदकम्मंसियणिदेसेणागुणिदकम्मंसियपडिसेहो कओ। सत्तमपुढिविणेरइयणिहेसेण वि अणेरइयपडिसेहो अण्णपुढविणेरइयपडिसेहो च कओ ति दट्ठयो । मिच्छत्तस्स उकस्सयं पदेससंतकम्मं अंतोमुहुत्तेण होइदि ति सम्मत्तमुप्पाइदमिदि भणिदे अंतोमुहुनेण चरिमसमयणेरइयभावेण परिणमिय मिच्छत्तपदेससंतकम्ममुक्कस्सं काहिदि त्ति एदम्मि अवत्थाविसेसे तिण्णि वि करणाणि कादूण तेण पढमसम्मत्तमुप्पाइदमिदि वुत्तं होइ । सव्वुक्कस्सियाए पूरणाए सम्मत्तं पूरिदमिदि भणिदे सव्वजहण्णगुणसंकमभागहारेण सव्वुकस्सगुणसंकमपूरणकालेण च सम्मत्तमावरिदमिदि भणिदं होइ । एवं च पूरिदूण कमेण मिच्छत्तं पडिवण्णस्स पढमसमए चे पयदुक्कस्ससामित्तं होइ, णाण्णत्थे ति जाणावणटुमिदं वयणं-'तदो उवसंतद्धाए पुण्णाए मिच्छत्तमुदीरयमाणस्स' इचादि । एतदुक्तं भवति, तहा पूरिदसम्मत्तो तेण दव्वेणाविणद्वेणुवसमसम्मत्तकालमतोमुहुत्तमेत्तमणुपालेऊण तदवसाणे मिच्छत्तमुदीरयमाणो पढमसमयमिच्छाइट्ठो जादो। तस्स पढमसमयमिन्छाइहिस्स * जिस गुणितकर्मा शिक सातवीं पृथिवीके नारकीके अन्तर्मुहूर्त वाद मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होगा, अतएव जिसने अन्तमुहूर्त पहले ही सम्यक्त्वको उत्पन्न कर सबसे उत्कृष्ट पूरणाके द्वारा सम्यक्त्वको पूरित किया । तदनन्तर जो उपशमसम्यक्त्वके कालके पूरा होनेपर मिथ्यात्वकी उदीरणा कर रहा है ऐसे प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । ३६. यहाँ पर 'गणितका शिक' पदके निर्देश द्वारा अगुणितकर्मा शिकका निषेध किया गया है। 'सातवीं पृथिबीका नारकी' इस पदके निर्देश द्वारा भी जो नारकी नहीं हैं या अन्य पृथिवियोंके नारकी हैं उनका निषेध किया गया जानना चाहिए । 'मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म अन्तमुहूतमें होगा ऐसी अवस्थामें सम्यक्त्वको उत्पन्न किया ऐसा कहने पर उससे इस अवस्थाविशेष में तीनों ही करणोंको करके उसने प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है। सबसे उत्कृष्ट पूरणाके द्वारा सम्यकत्वको पूरित किया ऐसा कहनेपर उससे सबसे जघन्य गुणसंक्रम भागहार और सबसे उत्कृष्ट गुणसंक्रमकालके द्वारा सम्यक्त्वको पूरित किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार पूरित करके क्रमसे मिथ्यात्वको प्राप्त हुए उस जीवके प्रथम समयमें ही प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, अन्यत्र नहीं इस बातका ज्ञान करानेके लिए 'तदनन्तर उपशमसम्यक्त्वके कालके समाप्त होने पर मिथ्यात्वकी उदीरण करनेवाले जीवके' इत्यादिरूपसे यह वचन दिया है। उक्त कथनका यह तात्पर्य है कि जो उस प्रकारसे सम्यक्त्वको पूरितकर उस द्रव्यको नष्ट किये बिना अन्तमुहूर्तप्रमाण सम्यक्त्वके कालको पालनकर उसके अन्तमें मिथ्यात्वकी
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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