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________________ गा० ५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे हाणाणि १६३ भेदेण दुविहं पि अप्पाबहुअमेत्य बत्तइस्सामो । तं जहा, सत्थाणे पयदं–मिच्छत्तस्स सव्वत्थोवाणि बंधसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि । हदसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि। हदहदसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । को गुणगारो ? असंखेजा लोगा। कारणं सुगमं । एवं सव्यकम्माणं । णवरि सम्म०-सम्मामि० सव्वत्थोवाणि घादट्ठाणाणि, दंसणमोहक्खवणाए चेव तेसिमुवलंभादो। संकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । केत्तियमेत्तेण ! एगरूवमेत्तेण । कुदो ! उक्कस्साणुभागट्ठाणस्स वि तत्थ पवेसुवलंभादो। एवं सत्थाणप्पाबहुअं समत्तं । ५६०. संपहि परत्थाणप्पाबहुअं वत्तइस्सामो। तं जहा-सव्वत्थोवाणि सम्मामि० अणुभागसंकमट्ठाणाणि । कुदो ? संखेजसहस्सपमाणत्तादो। सम्मत्त अणुभागसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । कदो ? अंतोमुहुत्तपमाणत्तादो। हस्सबंधसमुप्पत्तियसंकमट्ठा० असंखेजगुणाणि । हदसमुप्पत्तिय०टा० असंखेजगुणाणि । हदहदसमुप्पत्तिय०टा० असंखेजगुणाणि । रदीए बंधसमु०संकमट्ठा० असंखेजगुणाणि । हदसमुप्प०संकमट्ठा० असंखेजगुणाणि । हदहदसमुप्पत्तियसंकमट्ठा० असंखेजगुणाणि । पुरिसवेदस्स बंधसमुप्पत्तियसंकमडाणाणि असंखेजगुणाणि। हदसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । हदहदसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । इथिवेदस्स बंधसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । हदसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । हदहदसमुप्पत्तियसंकमट्ठा० असंखेजगुणाणि । भावसे स्वस्थान अल्पबहुत्वका भी सूचन किया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इसलिए स्वस्थान और परस्थानके भेदसे दोनों प्रकारके अल्पबहुत्वको यहाँ पर बतलाते हैं। यथा-स्वस्थानका प्रकरण है । मिथ्यात्वके बन्धसमुत्पत्तिक संक्रमस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे हतसमुत्पत्तिक संक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे है। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है। कारण सुगम है। इसी प्रकार सब कर्मो के उक्त स्थानोंका अल्प बहुत्व जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके घातस्थान सबसे स्तोक हैं, क्योंकि बे दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें ही उपलब्ध होते हैं। उनसे संक्रमस्थान. विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं। एक अङ्कप्रमाण अधिक हैं, क्योंकि उत्कृष्ट अनुभागस्थानका भी उनमें प्रवेश देखा जाता है । इस प्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६५६०. अब परस्थान अल्पबहुखको बतलाते हैं। यथा-सम्यग्मिथ्यात्वके अनुभागसंक्रमस्थान सबसे स्तोक हैं, क्योंकि वे संख्यात हजार हैं। उनसे सम्यकत्वके अनुभागसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि वे अन्तर्मुहूर्तके समयप्रमाण हैं। उनसे हास्यके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातनुणे हैं। उनसे हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे रतिके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे पुरुषवेदके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे इंतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थ न असंख्यातगुणे हैं । उनसे स्त्रीवेदके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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