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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६४८६. पयदजहण्णसामित्तसाहणट्ठमिदं ताव पुवमेव णिद्दिट्टमट्ठपदं विसंजोयणापुन्वसंजोगविसयणवकबंथाणुभागस्स अंतोमुहुत्तकालभावियस्स सुहुमाणुभागादो अणंतगुणहीणतपदुप्पायणपरत्तादो । ण च तत्तो एदस्साणंतगुणहीणत्ताभावे तप्परिहारेणेत्थ सामित्तविहाणं जुत्त, तहा संते तत्थेव सामित्तविहाणे लाहदसणादो। एदेण पुचिल्लं पि जहण्णवड्डिसामित्तं समत्थियं दट्ठव्वं, एयंताणुवड्ढिचरिमाणुभागादो अणंतगुणहीणस्स तस्स सुहमाणभागदो हेट्ठदो समवट्ठाणे विसंवादाणुवलंभादो । एवमेदं सामित्तसाहणमट्ठपदं परूविय संपहि एत्थ जहण्णहाणिसंभवक्कमपदंसणट्ठमिदमाह
* तदो जो अंतोमुहुत्तसंजुत्तो जाव सुहुमकम्मंजहएणयं ण पावदि ताव घादं करेज्ज।
६४८७. जदो एवं तदो जो अंतोमुहुत्तसंजुत्तो जीवो सो जाव सुहुमकम्मं जहण्णं ण पावइ ताव संकिलेसादो विसोहिं गंतूणाणुभागखंडयधादं सिया करेज, संते संभवे सकारणसामग्गीवसेण तप्पवुत्तीए 'पडिबंधाभावादो। एदेण सुहुमाणुभागसंतकम्ममवोलीणस्स खंडयघादासंभवासंका पडिसिद्धा दट्टया । तत्तो हेट्ठा चेव एयंताणुवड्डिकालस्स परिच्छेद
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६४८६. प्रकृत जघन्य स्वामित्वकी सिद्धिके लिए पहले ही इस अर्थपदका निर्देश किया है, क्योंकि यह वचन विसंयोजनापूर्वक पुनः संयुक्त होनेपर अन्तर्मुहूर्तकाल तक होनेवाले नवकबन्धसम्बन्धी अनुभागके सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी अनुभागसे अनन्तगुणी हीनताके कथन करनेमें तत्पर है । यदि कहा जाय कि उससे यह अनन्तगुणा हीन नहीं है, इसलिए उसके परिहार द्वारा यहीं पर स्वामित्वका विधान करना युक्त है सो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि वैसी अवस्थामें वहीं पर स्वामित्व का विधान करनेमें लाभ देखा जाता है । इस वचन द्वारा पूर्वोक्त जघन्य वृद्धिके स्वामित्वको भी समर्थित जान लेना चाहिए, क्योंकि वह एकान्तानुवृद्धिके अन्तिम अनुभागसे अनन्तगुणा हीन है, इसलिए उसके सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी अनुभागसे कम होकर अवस्थित रहने में कोई विसंवाद नहीं पाया जाता । इस प्रकार स्वामित्वका साधन करनेवाले इस अर्थपदका कथन करके अब यहाँ पर जघन्य हानिके सम्भव क्रमको दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* तदनन्तर अन्तमुहूर्त कालतक संयुक्त हुआ जो जीव जबतक जघन्य सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी कर्मको नहीं प्राप्त करता है तब तक घात करता है ।
६४८७. यतः ऐसा है अतः अन्तमुहूर्त कालतक संयुक्त हुआ जो जीव है वह जबतक जघन्य सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बधी कर्मको नहीं प्राप्त करता है तब तक संक्लेरासे विशुद्धिको प्राप्त करके कदाचित् अनुभागकाण्डकघात करता है, क्योंकि सम्भव होने पर अपनी कारणसामग्रीके कारण उसकी उत्पत्ति होनेमें कोई प्रतिबन्ध नहीं है। इससे जिसका सूक्ष्म एकेन्द्रियसन्बन्धी अनुभागसत्कर्म अभी गत नहीं हुआ है ऐसे उस जीवके काण्डकघात असम्भव है ऐसी आशंकाका निषेध जान लेना चाहिए, क्योंकि उससे नीचे ही एकान्तानुवृद्धिके कालका सद्भाव स्वीकार किया गया
१. ता प्रतौ प [य] डि, पा प्रतौ पयडि इति पाठः ।