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गा० ५८ ]
उत्तरपयडऋणुभागसंकमे भुजगार संकमस्स अप्पाबहु
९ ४३७. भावो सव्वत्थ ओदइओ भावो । * अप्पाबहु । ९४३८. भुजगारादिपदसंकामयाणं मिदाणिं कस्सामो त्ति अहियार संभालणापरमिदं सुत्तं । * सव्वथोवा मिच्छत्तस्स अप्पयरसंकामया । ६ ४३६ कुदो ? एयसमयसंचिदत्तादो ।
* भुजगारसंकामया असंखेज्जगुणा । ६ ४४०.
पमाणबिसयणिण्णयसमुप्पा यणट्टमप्पा बहूअ
कुदो ? अंतमुत्तमेतभुजग र कालब्भंतरसंभवग्गहणादो ।
* अवट्ठिदसंकामया संखेज्जगुणा ।
§ ४४१. कुदो ? भुजगारकालादो अवदिकालस्स संखेजगुणत्तादो ।
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* सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा अप्पयरसंकामया ।
९ ४४२. कुदो ? दंसणमोहक्खबयजीवाणमेव तदप्पयरभावेण परिणदाणमुवलंभादो ।
* अवत्तव्वसंकामया असंखेज्जगुणा ।
६ ४४३. कुदो ? पलिदोवमासंखेज्जभागमेत्तणिस्संतकम्मियजीवाणमेयसमयग्मि सम्मत्तगणसंभवादो ।
§ ४३७. भाव सर्वत्र औदयिक भाव है ।
* अब अल्पबहुत्वको कहते हैं ।
१४३८. भुजगार आदि पदोंके संक्रामकों के प्रमाणविषयक निर्णयके उत्पन्न करने के लिए इस समय अल्पबहुत्वको करते हैं इस प्रकार यह सूत्र अधिकारकी सम्हाल करता है ।
* मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रामक जीव सवसे स्तोक हैं । ६४३६. क्योंकि इनका संचयकाल एक समय है ।
* उनसे भुजगार संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
§ ४४०. क्योंकि अन्तर्मुहूर्तप्रमाण भुजगारके भीतर भुजगारसंक्रामक [जितने जीव संभव हैं उनका ग्रहण किया है ।
* उनसे अवस्थितसंक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं ।
६ ४४१. क्योंकि भुजगारपद के कालसे अवस्थितपदका काल संख्यातगुणा है ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं ।
६ ४४२, क्योंकि जो दर्शनमोहकी क्षपणा करते हैं वे ही अल्पतरभाव से परिणत होते हुए उपलब्ध होते हैं।
* उनसे अवक्तव्यसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
६ ४४३. क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तासे रहित पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवोंके एक समयमें सम्यक्त्वकी प्राप्ति सम्भव है ।