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________________ ११६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ ६४२२. कुदो ? तिसु वि कालेसु वोच्छेदेण विणा एदेसिमवट्ठाणादो। * अवत्तव्वसंकामया केवचिरं कालादो होति ? ६ ४२३. सुगमं। ॐ जहएणेण एयसमग्रो। ६४२४. विसंजोयणापुबसंजोजयाणं केत्तियाणं पि जीवाणमयसमयमवत्तव्यसंकर्म कादण विदियसमए अवत्थंतरगयाणमयसमयमेत्तकालोवलंभादो। ॐ उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज दिभागो। ६ ४२५. तदुवक्कमणवाराणमुक्कस्सेणेत्तियमेत्ताणमुवलंभादो। * एवं सेसाणं कम्माणं । णवरि अवत्तव्यसंकामयाणमुक्कस्सेण संखेजा समया। ६४२६. सुगमं । एवमोधो समत्तो । आदेसेण सव्वमग्गणासु विहत्तिभंगो। णवरि मणुसतिए बारसक०–णवणोक० अवत्त० ओघं । * एत्तो अंतरं। ६४२२. क्योंकि तीनों ही कालोंमें विच्छेदके बिना इन पदोंके संक्रामकोंका अवस्थान पाया जाता है। * अवक्तव्यसंक्रामकोंका कितना काल है ? ६४२३. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है। ६४२४. क्योंकि जो नाना जीव विसंयोजनापूर्वक संयोजना करके एक समयके लिए अवक्तव्यपदके संक्रामक होकर दूसरे समयमें दूसरी अवस्थाको प्राप्त हो जाते हैं उनके उक्त पदके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। * उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४२५. क्योंकि इनके उपक्रमणबार उत्कृष्टरूपसे इतने ही पाये जाते हैं। * इसी प्रकार शेष कर्मों का काल जानना चाहिए । मात्र इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यसंक्रामकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ६४२६. यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। आदेशसे सब मार्गणाओंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामकोंका काल ओघके समान है। विशेषार्थ-ओघसे बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामकोंका जो काल कहा है वह गतिमार्गणामें मनुष्यत्रिकमें ही घटित होता है, इसलिए यहाँ पर मनुष्यत्रिकमें यह भङ्ग ओघके समान जाननेकी सूचना की है। शेष कथन स्पष्ट ही है। * आगे नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरको कहते हैं।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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