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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
S४११. भागाभाग - परिमाण खेत्त- फोसणाणं च विहत्तिभंगो कायव्वो । णवरि सव्वत्थ वारसक० - णवणोक० अवत्त० पयडिभुजगार संकमअवत्तव्त्रभंगो | * णाणाजीवेहि कालो ।
$ ४१२. अहियारसंभालणवयणमेदं सुगमं ।
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* मिच्छत्तस्स सव्वे संकामया सव्वद्धा ।
१४१३. कुदो ! मिच्छत्तभुजगारादिपदसंकामयाणं तिसु वि कालेसु वोच्छेदाभादो |
* सम्मत्त - सम्ममिच्छुत्ताणमप्पयरसंकामया केवचिरं कालादो होंति ? ४१४. सुगमं ।
* जहणणेण एयसमत्रो ।
४१५. कुदो ? दंसणमोहक्खवयणाणाजीवाणमेयसमयमणुभा गखंडयघादणवसेणप्पयरभावेण परिणदाणं पयदजहण्णकालोवलंभादो ।
* उक्कस्से संखेज्जा समया ।
४११. भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शनका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायों के अवक्तव्यपदका भङ्ग प्रकृतिभुजगार संक्रमके वक्तव्यपदके समान जानना चाहिए ।
विशेषार्थ — अनुभागविभक्ति अनुयोगद्वार में इन अधिकारोंका जिसप्रकार कथन किया है, न्यूनाधिकता से रहित उसी प्रकार यहाँ पर कथन करनेसे इनका अनुगम हो जाता है । मात्र वहाँ पर सत्कर्मकी अपेक्षा विवेचन किया है और यहाँ पर संक्रम पदपूर्वक वह विवेचन करना चाहिए । शेष कथन स्पष्ट ही है ।
* अब नाना जीवोंकी अपेक्षा कालको कहते हैं ।
६४१२. यह वचन अधिकारकी सम्हाल करनेके लिए आया है, जो सुगम है ।
* मिथ्यात्वके सव पदोंके संक्रामकोंका काल सर्वदा है ।
६ ४१३. क्योंकि मिथ्यात्वके भुजगार आदि पदों के संक्रामकोंका तीनों ही कालोंमें विच्छेद नहीं पाया जाता ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रामकोंका कितना काल है ?
६ ४१४. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य काल एक समय है ।
§ ४१५. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय अनुभागकाण्डकघातवश एक समयके लिए
अल्पतरपदसे परिणत हुए नाना जीवोंके प्रकृत जघन्य काल उपलब्ध होता है ।
* उत्कृष्ट काल संख्यात समय है ।