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________________ ११२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * अणताणुबंधीणमवट्ठिदसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ९४०३. सुगमं । * जहणणेण एयसमओ । ४०४. एदं पि सुगमं । [ बंधगो ६ * उक्कस्सेण वेछावद्विसागरोवमाणि सादिरेयाणि । ९४०५. सुगमं । एवमोघो समत्तो । आदेसेण सव्वगहमग्गणावयवेसु विहत्तिभंगो । वरि मणुसतिए बारसक० - वणोक० अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० पुत्रको डिपुधत्तं । * णाणाजीवेहि भंगविचओ । ४०६. सुगमं । * मिच्छत्तस्स सव्वे जीवा भुजगारसंकामया च अप्पयरसंकामया च अवट्ठिदसंकामया च । १४०७. मिच्छत्तभुजगारादिपदाणं तिण्हमेदेसिं संकाम्या णाणाजीवा णियमा अस्थि ति सुत्तत्थसंबंधो । कुदो वुण सव्वद्धमेदेसिमत्थित्तणियमो ? अनंतजीवरासिविसयत्तेण पडिवोच्छेदामाबादो | * अनन्तानुबन्धियोंके अवस्थित संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ९४०३. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य अन्तर एक समय है । ६४०४. यह सूत्र भी सुगम है । * उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छ्यासठ सागरप्रमाण है । ६४०५. यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई । आदेशसे सब गति सबन्धी अवान्तर भेदोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिक में are कषाय और नौ नोकषायोंके वक्तव्यसंका मकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । विशेषार्थ – कर्मभूमि के मनुष्यत्रिककी उत्कृष्ट कायस्थिति पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । इसलिए इसका प्रारम्भ और अन्तमें दो बार उपशमश्र णि पर चढ़ाने और उतारनेसे बारह कषाय और नौ नोकषायके वक्तव्यपदका मनुष्यत्रिकमें उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त हो जाता है । शेष कथन स्पष्टी * अब नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचयको कहते हैं । ९४०६. यह सूत्र सुगम है । * मिथ्यात्वके भुजगारसंक्रामक, अल्पतरसंक्रामक और अवस्थितसंक्रामक नाना जीव नियमसे हैं । ४०७. मिथ्मात्वके भुजगार आदि इन तीनों पदोंके संक्रामक नाना जीव नियमसे हैं ऐसा यहाँ पर सूत्रार्थका सम्बन्ध करना चाहिए ।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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