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गा० ५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे भुजगारसंकमस्स एयजीवेण कालो
ॐ अवट्ठिदसंकामो केवचिरं कालादो होइ ? ६ ३७०. सुगमं। * जहपणेण अंतोमुहुत्तं । ६३७१. चरिमाणुभागखंडयुक्कीरणद्धाए तदुधलंभादो।
* उकसेण वेछावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
६३७२. एदस्स सुत्तस्स अस्थपरूवणा सुगमा, सम्मत्तस्सेव सादिरेयवेछावद्विसागरोवममेत्तावट्ठिदुक्कस्सकालसिद्धीए पडिबंधाभावादो।
* सेसाणं कम्माणं भुजगारं जहणणेण एयसमो। ६ ३७३. सुगमं। * उकसेण अंतोमुहुत्तं। ६ ३७४. अणंतगुणवढ्ढिकालस्स तप्पमाणत्तोवएसादो । ® अप्पयरसंकामो केवचिरं कालादो होइ ? ६ ३७५. सुगमं । * जहएणुकसेण एयसमो । ६३७६. एदं पि सुगमं । एदेण सामण्णणिहेसेण पुरिसवेद-चदुसंजलणाणं पि अप्पयर
* अवस्थितसंक्रामकका कितना काल है ? ६ ३७०. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। ६३७१. क्योंकि अन्तिम अनुभागकाण्डकके उत्कीरण कालके भीतर यह काल उपलब्ध होता है। * उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है।
६३७२. इस सूत्रकी अर्थप्ररूपणा सुगम है, क्योंकि सम्यक्त्वके समान इसके अवस्थितपदके साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण कालकी सिद्धि होनेमें कोई रुकावट नहीं आती।
* शेष कर्मो के भुजगारसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है । ६ ३७३. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। ६३७४. क्योंकि अनन्तगुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल तत्प्रमाण है ऐसा आगमका उपदेश है। * अल्पतरसंक्रामकका कितना काल है ? ६३७५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। ६ ३७६. यह सूत्र भी सुगम है। यह सामान्य निर्देश है। इससे पुरुषवेद और चार
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