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________________ ८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ गोध ६२६१. कुदो ? णकबंधसरूवादो पुबिल्लादो चिराणसंतसरुवस्सेदस्स तहामावसिद्धीए विरोहाभ वादो। 8 रदोए जहपणाणुभागसंकमो अणंतगुणो। ६ २६२. कुदो ? सबथ रदिपुरस्सरत्तेणेव हस्सपवुत्तीए दंसणादो । * दुगुंछाए जहपणाणुभागसंकमो अपंतगुणो । ६ २६३. अप्पसत्थयरत्तादो। * भयस्स जहपणाणुभागसंकमो अणंतगुणो। ६ २६४. दुगुछिदो देसच्चागमेत्तं कुणदि । भयोदएण पुण पाणचागमवि कुणदि ति तिवाणुभागतमेदस्स दट्टब्बं । सोगस्स जहणाणुभागसंकमो अर्थतगुणो। ६ २६५. कुदो १ छम्मासपजंततिबदुक्खकारणत्तादो। * अरवीए जहएणाणुभागसंकमो अर्णतगुणो । ६२६६. कुदो ? पुरंगमकारणत्तादो। * इत्थिवेदस्स जहपणाणुभागसंकमो अणतगुणो। ६ २६७. कुदो ? अंतोमुहुत्तं हेट्ठा ओयरिदूण पुवमेव खविदत्तादो। * पqसयवेदस्स जहषणाणुभागसंकमो अणंतगुणो। ६ २६१. क्योंकि अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम नवकबन्धरूप है और इसका प्राचीन सत्तारूप है, इसलिए इसके अनन्तगुणे सिद्ध होनेमें कोई विरोध नहीं आता। * उससे रतिका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६ २६२. क्योंकि सर्वत्र रतिपूर्वक ही हास्यकी प्रवृत्ति देखी जाती है। * उससे जुगुप्साका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६२६३. क्योंकि यह अत्यन्त अप्रशस्त है। * उससे भयका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६ २६४. क्योंकि जिसे जुगुप्सा हुई है वह मात्र जुगुप्साके स्थानका त्याग करता है। किन्तु भयवश यह प्राणी प्राणोंतकका त्याग कर देता है, अतएव जुगुप्सासे इसका तीव्र अनुभाग जानना चाहिए। * उससे शोकका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६ २६५. क्योंकि यह छह माह तक तीब्र दुःखका कारण है। * उससे अरतिका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६२६६. क्योंकि यह शोकसे भी आगेका कारण है। * उससे स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६ २६७. क्योंकि अन्तर्मुहूर्त पूर्व ही इसका क्षय हो जाता है। * उससे नपुंसकवेदका अन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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