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________________ गा०५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे अप्पाबहुअं ८५ ___६२८६. कुदो ? देसघादिएयट्ठाणियसरूवादो पुजिल्लादो सबघादिविट्ठाणियसरूबस्सेदस्स तहाभावसिद्धीए णाइयत्तादो। * अणंताणुबंधिमाणस्स जहणणाणुभागसंकमो अणंतगुणो। ६२८७. किं कारणं ? सम्मामिच्छत्ताणुभागविण्णासो मिच्छत्तजहण्णफद्दयादो अणंतगुणहीणो होऊग लद्धावट्ठाणो पुणो दंसणमोहक्खवणाए संखेजसहस्समेत्ताणुभागखंडयघादसमुवलद्धजहण्णभावो एसो वुण णकधसरूवो वि सम्मामिच्छत्तेण समाणपारंभो होदण पुणो मिच्छत्तजहणगफद्दयप्पहुडि उबरि वि अणंतफद्द एसु लद्धविण्णासो अपत्तघादो च तदो अणंतगुणत्तमेदस्स सिद्धं । कोधस्स जहपणाणुभागसंकमो विसेसाहित्रो । ६२८८. कुदो ? पयडिविसे दो । केत्तियमेत्तेण १ तप्पाओग्गाणंतफद्दयमेत्तेण । ॐ मायाए जहपणाणुभागसंकमो विसेसाहिओ। ६ २८६. केत्तियमेत्तेण ? अणतफद्दयमेचेण । कुदो ? साभावियादो। लोभस्स जहपणाणुभागसंकमो विसेसाहिओ। ६ २६०. एस्थ विसेसपमाणमणंतरणिद्दि हमेव । * हस्सस्स जहपणाणुभागसंकमो अणंतगुणो । ६ २८६. क्योंकि देशघाति एक स्थानिकरूप पुरुषवेदके जघन्य अनुभागसंक्रमसे सर्वघाति द्विस्थानिकरूप इसका अनन्तगुणत्व न्यायप्राप्त है। * उससे अनन्तानुबन्धी मानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६२८७. क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्वका अनुभागविन्यास मिथ्यात्वके जघन्य स्पर्धकसे अनन्तगुणा हीन होकर अवस्थित है तथा दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें संख्यात हजारप्रमाण अनुभ काण्डकोंके घातसे जघन्यपनेको प्राप्त हुआ है। परन्तु अनन्तानुबन्धी मानका जघन्य अनुभागविन्यास यद्यपि नवकवन्धरूप है और जहाँसे सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागका प्रारम्भ होता है वहींसे इसका प्रारम्भ हुआ है तो भी मिथ्यात्वके जघन्य स्पर्धकसे लेकर उसके ऊपर भी अनन्त स्पर्धकों तक यह पाया जाता है तथा इसका घात भी नहीं हुआ है, इसलिए यह अनन्तगुणा है यह सिद्ध होता है। * उससे अनन्तानबन्धी क्रोधका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। २८८. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। कितना अधिक है ? तत्प्रायोग्य अनन्त स्पर्धकप्रमाण अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायाका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। ६२८६. कितना अधिक है ? अनन्त स्पर्धकमात्र अधिक है, क्योंकि ऐसा स्वभाव है। * उससे अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है । ६ २६०. यहाँ पर भी जो विशेषका प्रमाण है उसका निर्देश अनन्तर पूर्व किया ही है । * उससे हास्यका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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