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________________ शंका ६ और उसका समाधान ४६७ इसका ज्ञान करना है तो हमें सर्व प्रथम साधनभूत बाह्याभ्यन्तर सामग्रीके ऊपर दृष्टिपात करना होगा, इसके बिना इस उपादानसे अगले समय में क्या कार्य होगा यह अनुमान नहीं कर सकते। इसी तथ्यको आचार्य ने उक्त टोकावचन द्वारा स्पष्ट किया है। बाह्य सामग्रो द्वारा परोक्षभून कार्यका निर्णय करने के लिए उनका कहना है कि वहाँ पर एक तो वही बाह्य सामग्री होनी चाहिए जिससे परोक्षभूत निश्चित कार्यकी सूचना मिले, उससे विरुद्ध कार्यको सूनित करनेवाली बाह्य सामग्री वहाँ पर नहीं होनी नाहिए। दुरारं वहाँ पर उपस्थित बाह्य सामग्रीसे परोक्षभत जिस कार्यको सूचना मिलती हो उगमें कमी नहीं होनी चाहिए । इस प्रकार तो कारणको हेतू बना परोक्षत कार्यका अनुमान करनेवाला व्यक्ति सम्बक प्रकारले बाह्य सामग्रोका विचार करले । और इसी प्रकार वह जिस आम्पन्सर सामग्रीको परोक्षभूत कार्य की अन्त्यक्षण प्राप्त आभ्यन्तर सामग्री रामझ रहा है उसका भी विचार कर ले। यहां ऐसा न हो कि है तो वह अन्य कार्यको अन्त्यक्षणप्राप्त सामग्री और अपनो बुद्धिसे वह समझ बैठा है उससे भिन्न दूसरे कार्यको अन्त्यक्षण प्राप्त सामयी। इस प्रकार बाहा-आमगन्तर सामग्री के आधार पर परोक्षभूत कार्यका अनुमान करनेवाला व्यक्ति यदि परोभून कार्यको अविनाभून बाह्याभ्यन्तर सामग्रीको ठीक तरहसे जान सका तो निश्चित समहिए कि ऐसो सामग्रीको हेतु बनाकर परोक्षभूत तदनुरूप जिस कार्यका अनुमान किया जायगा वह यथार्थ हो ठहरेगा। यहाँ ऐसा समझना चाहिए कि प्रत्येक कार्यकी बाह्याभ्यन्त र सामग्री सुनिश्चित है। वह प्रत्येक समबमें युगपत् प्राप्त होती रहती है, उसके प्राप्त होने में किसी प्रकारको बाधा नहीं आती। यही कारण है कि प्रत्येक रामवमें अपनी-अपनो बाह्याभ्यन्तर सामग्री के अनुरूप कार्यकी उत्पत्ति होती रहती है । बाह्याम्पतर राामग्रीको हेतु बनाकर परोपक काका अनुमान का हित दुई प्रकारको सामग्रीके आधार पर निर्णय करने की दिशामें प्रयत्न करना अन्य बात है और वहाँ पर उपस्थित हुई राम प्रकारको सामग्री में से परोक्षभत कार्यके साथ अधिनाभाव सम्बन्ध रखनेवाली सामग्रीको जानकर उसके आधार पर अगले समयमें नियमसे उत्पन्न होनेवाले कार्यका अनुमान कर लेना अन्य बात है। वस्तुत: उक्त टीकावचनम कार्यकारणभावका विचार नहीं किया गया है। वहाँ तो परोक्षभूत कार्यका अनुमान करते समय जिस बाह्याम्प्रन्तर सामग्रीको हेतु बनाया जाय उसका विचार कितनी गहराईरो करना चाहिए मात्र इसका विचार किया गया है। तभी तो आचार्यने निष्कर्षरूपमें यह वचन लिखा है-कार्याविनामानितया निश्चितस्त्र विशिष्ट कारणस्य छनादेलिंगत्वेनांगीकरणात् । तात्पर्य यह है कि जिस कारणका जिस कार्यके साथ अविनाभाव सम्बन्ध है, यतः उससे उसी कार्यकी उत्पत्ति होगी अतः ऐसा सुनिश्चित कारण ही परोक्षभूत कार्यका अनुमान करानेमें साधन बन सकता है, अन्य नहीं यह उक्त सपन ऋधनका तात्पर्य है । ___आर पश्च अनुमान प्रकरणकी इस मीमांसाको कार्य-कारणभावकी मीमांमाम वसे ले गया और उस आधार पर उसने असंगत अनेक तर्कणाऐं उपस्थित कर उसे जटिल कैसे बना दिया इसका हमें आश्चर्य है। कार्य-कारणका विचार करना अन्य बात है और विवक्षित कार्यका अनुमान करते समय किम स्थितिमें कौन कारण हेतृ हो सकता है इसे समझना अन्य बात है। इससे कार्य-कारणभावकी नियत शृखलामें कहां बाधा उपस्थित होती है इसका अपर पक्ष स्वयं विचार करे। अनुमान करने की दृष्टिसे कोई कार्य अपनी विवक्षामें हो और बाह्यभ्यन्तर सामग्री दूसरे कार्यको उपस्थित हो, फिर भी हम उससे भिन्न किसी दूसरी सामग्नोको देखकर विवक्षित कार्यका अनुमान करें तो हमारा अनुमान ज्ञान हो असत्य सिद्ध होगा, इससे नियत कार्यकारणपरंपरामें आंच आनेबाली नही । स्पष्ट है कि उक्त दीकाको ख्यालमें रख कर यहां पर अपर पक्षने कार्य कारणभावके सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा है वह केवल भ्रम उत्पन्न करने का एक प्रयासमात्र हो है।
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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