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________________ ४२८ जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा साधनको कमी रह जाय तो प्रश्नोंका उत्तर नहीं लिखा जा सकेगा। इसके सिवाय विसन करनेवाले प्रतिबन्धक कारणों का अभाव भी मिलना चाहिये, रात्रिम लिखते समय बिजलो फैल हो जावे, दीपक बुझ जावे, शरीरमें भयानक वेदमा उत्पन्न हो जाये तो प्रश्नोंका उत्तर लिखना असंभव हो जायगा । मनुष्य जब पैदल चलता है तो उसकी गति धीमी होती है, जद वह तांगे पर सवार होकर यात्रा करता है तब वह अपने लक्ष्य पर जल्दी पहुंच जाता है, जब वह साइकलसे जाता है तो तांगेकी अपेक्षा और भी शोन अपने लक्ष्य पर पहुंच जाता है । दूरवर्ती नगरमें पहुंचने के लिये वह रेलगाड़ीसे जाता है तब और शीघ्र पहुंच जाता है। यदि और भी शोघ्र पहुँचनकी इच्छा होती है तो वह मोटर द्वारा सफर करता है और अत्यन्त शीघ्र पहुँचने के लिये हवाई जहाजका भी उपयोग करता है। स्वर्गीय सम्राट पंचमजार्ज सन् १९१२ में इंमलैंडसे दिल्लो आये थे तब हवाई जहाज नहीं थे, अतः समुद्री जहाजमें बैठ कर आये थे और एक मास में भारत पहुंचे थे। अभी २.३ वर्ष पहले जब उनकी पौत्री साम्राज्ञी एलजावेथ भारत आयो तब घे एक ही दिन में हवाई जहाज द्वारा इंगलैण्डसे भारत पहुंच गयी थी। कुछ समय बाद जब अतिस्वन ( सुपर सोनिक) विमान चाल हो जायेंगे तब लन्दनसे दिल्लीकी यात्रा ४-५ घंटे की रह जायगी। आज अमेरिका और रूस में चंद्रमा पर पहुंचने की होड़ लगी हुई है । उपादान अपने विकास में निमित्तोंके कितने अधीन है इसका पता उपयूमत उदाहरणाः सह में लग जाता है। मुद्गरादिग्यापारानन्तरं कार्योत्पादवत् कारणविनावास्यापि प्रतीतेः, विनयो घट उत्पन्नानि कपालानीति व्यवहार यसद्भावात्-अष्टसहस्री पृष्ठ २०० कारिका ५३ अर्थ--मुगर आदिके व्यापारके अनन्तर घटका विनाश और कपालोंका उत्पाद होता हुआ देखा जाता है। यहाँ पर इसना आशय लेना है कि मुद्गरको घटके विनाश और कपालोंके उत्पादमें निमित्तता स्वीकार की गयी है । आगे अष्टसहनी पृष्ठ २०० पर ही लिखा है : तस्मादयं विनाशहेनुर्भावमभावीकरोतीति न पुनरकिंचिस्करः । अर्थ-इसलिये घटविनाशका हेतुभूत मुद्गर भावात्मक पदार्थको अभावात्मक बना देता है तो इसे अकिचित्कर कसे कहा जा सकता है ? इस कथनसे निमित्तकारणकी अकिचित्करताका स्पष्ट खण्डन हो जाता है। इससे सम्बन्ध रखनेवाला रहतसा विवेचन और आगमप्रमाण प्रश्न संख्या १,५,८,१०,११,और १७ में भी मिलेंगे। अतः कृपया वहाँ पर देखनेका कष्ट कीजियेगा।
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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