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________________ शंका और उसका समाधान ४२५ कारणरूप उधम की, तहाँ तो अन्य कारण मिलें ही मिलें, अर कार्यक्री सिद्धि ही होय । बहुरि जिस कारण से कार्यसिद्धि होय अथवा नाहीं भी होय, तिस कारणरूप उद्यम करे, तहाँ अन्य कारण मिले तो कार्य सिख धोय, न मिले सो सिद्ध न होय । सो जिनमत्त विर्षे जो मोक्षका उपाय कहा है, सो इसते मोक्ष होय ही होय । तात जो जीच पुरुषार्थ करि जिनेश्वरके उपदेश अनुसार मोक्षका उपाय करे है ताके कासलब्धि घा होनहार भी भया और कर्मका उपशमादि भया है, तो यह ऐसा उपाय करें है तात जो पुरुषार्थ करि मोक्षका उपाय करे है साकै सर्व कारण मिले ऐसा निश्चय करना अर बाके अवश्य मोक्षकी प्राप्ति ima ___ श्री पं० फूलचन्द्रजीने मोक्षमार्गप्रकाशकके जो वाक्य उद्धृत किये है उनका अर्थ उपरोक्त वाक्योंको ध्यान में रखकर करना चाहिये । यह भी बात है कि पं. प्रवर टोडरमलजीके अवत कथनसे यह तो प्रगट होता नहीं कि कार्यको सिद्धि केवल भवितव्यसे ही हो जाती है, उसमें पुरुषार्थ अपेक्षित नहीं रहता है। वे तो अपने उक्त कथनसे इतनी ही बात कहना चाहते है कि कितने ही उपाय करते जाओ, यदि भवितव्य अनुकूल नहीं है तो कार्यको सिख नहीं हो सकती है। लेकिन यह निष्कर्ष तो कदापि नहीं निकाला जा सकता है कि यदि भवितव्य अनुकूल है तो बिना पुरुषार्थके हो अर्थको सिद्धि हो सकती है। जैसे मिट्टी में पट बनने को योग्यता नहीं है तो जुलाहा आदि निमित्त सामग्रीका कितना ही योग क्यों न मिलाया जावे, उस मिट्टी से पटका निर्माण असंभव ही रहेगा, लेकिन इससे यह निष्कर्ष कदापि नहीं निकाला जा सकता है कि मिट्टी में घटनिर्माणको योग्यता विद्यमान है तो कदाचित् कुम्भकार आदि निमित्त सामग्रीके सहयोगके बिना ही घटका निर्माण हो जायगा । सत्य बात तो यह है कि एक ओर तो मिट्टी में घनिर्माणको योग्यताके अभावमें जुलाहा आदि निमित्त सामग्रीका सहयोग मिट्टी से पटनिर्माणमें सर्वदा असमर्थ ही रहेगा और दूसरी और उस मिट्टी से घटका निर्माण भी तभी संभव होगा जब कि उसे कुम्भकार आदि निमित्त सामग्रीका अनुकुल सहयोग प्राप्त होगा और जब कुम्भकार आदि निमित्त सामग्रीका अनुकूल सहयोग प्राप्त नहीं होगा लब अन्य प्रकारको अनुकूल निमित्त सामग्रीका सहयोग मिलने के सबब तदनुकल अन्य प्रकारके कार्योंकी निष्पत्ति होते हुए भी उस मिट्टी से घटका निर्माण कदापि संभव नहीं होगा। पं० प्रवर टोडरमलजीके उक्त कथनका यह भी अभिप्राय नहीं है कि अमुक मिट्ठीसे चूंकि घटका निर्माण होना है, अतः उसकी प्रेरणासे कुम्भकार तदनुकूल व्यापार करता है, क्योंकि यह बात अनुभवके विरूद्ध है । लोकमें कोई भी व्यक्ति किसी भी कार्यके करते समय यह अनुभव नहीं करता है कि अमुक वस्तुसे चूंकि अमुक कार्य निष्पन्न होना है, इसलिये मेरा व्यापार तदनुकूल हो रहा है। वह तो कार्योत्पत्तिके अवसर पर केवल इसना ही जानता है कि अमुक वस्तुसे चूंकि अमुक कार्य सम्पन्न हो सकता है और सब इस आधारपर यह प्रयोजनवश तदनुकूल व्यापार करने लगता है और यही कारण है कि वस्तुगत कार्य योग्यताका कदावित ठीक ठीक ज्ञान न हो सकनेके कारण अथवा स्वगत कार्य कर्तृत्वकी अकुशलताके कारण या दूसरी सहकारी सामग्रीवे ठीक ठोक अनुकूलता न होमे अथवा बाषक सामग्रीके उपस्थित हो जाने पर अनेकों बार व्यक्तिके हाथमें असफलता ही रह जाया करती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भवितव्यता हो और तदनुकूल उपाय किये जावें तो विवक्षित कार्य की सिद्धि नियमसे होगी तथा भवितव्यता हो लेकिन उपाय न किये जावे या प्रतिकूल उपाय किये जावें तो
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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