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________________ वृतीय दौर : ३ : शंका १७ उपचारका क्षण क्या है ? निमित्तकारण और व्यवहार में यदि क्रमशः कारणता और नयत्यका उपचार है तो इनका प्रतिशंका ३ इस प्रश्नका उत्तर लिखते हुए आपने अपने प्रथम उत्तर में उपचारका लक्षण निम्न प्रकार लिखा था'परके सम्बन्ध (आश्रय ) से जो व्यवहार किया जाता है उसे उपचार कहते हैं ' इन लक्षण आपने स्वयं 'सम्बन्ध' इन्दका अर्थ 'आय' किया है, इसीलिये हमारी तरफसे यह बापत्ति उपस्थितकी गयी थी कि 'सम्बन्ध' शब्दका अर्थ 'आश्रय' करनेवर उपचार शब्दका अर्थ विल्कुल संकुचित हो गया है, इसलिये उपचारका यह लक्षण 'जीवी वर्णादिमान में घटित नहीं हो सकता है। अब आपने अपने द्वितीय उत्तर में यह लिखा है कि 'आश्रय' का अर्थ 'सम्बन्ध' हे 'आधार' नहीं। अच्छा तो यही होता कि आप प्रथम ही 'सम्बन्ध' शब्दका अर्थ 'आश्रय' ग करते उस हालत में हमें आपत्ति उपस्थित करने को बाध्य नहीं होना पड़ता, क्योंकि यह बात तो हमें भी मालुम है कि आचार्य अमृतचन्द्रने 'जीवने वर्णादिमान्' इस वाक्यमें उपचार स्वीकार किया है। आपके कथनसे स्पष्ट हो गया है कि 'सम्बन्ध' शब्दका अर्थ आपको 'आश्रय' अर्थ अभीष्ट नहीं है, केवल 'सम्बन्ध सामान्य' ही 'सम्बन्ध' शब्दका अर्थ आपको अभीष्ट है । इसके पहले हमने आपसे प्रश्न किया था कि आपके द्वारा माने गये उति में जो 'व्यवहार' शब्द आया है उसका अर्थ क्या है ? इसी प्रकार आपने अपने उसी उत्तर में आगे जो दूसरा लक्षण उपचारका लिखा था उसमें भी 'व्यवहार' शब्दका प्रयोग आपने किया है, इसलिये उस लक्षण में पठित 'व्यवहार' शब्दका भी अर्थ हमें पूछने के लिये बाध्य होना पड़ा था। दस उत्तर में आपने लिखा है कि माने हुए उपचारके लक्षणमें आये हुए 'बहार' शब्द पर्यायवाची शब्द आप और उपचार है। साथ ही यह लिखकर कि 'नीचे लिखे आगम क्योंने 'उपचार' पदका उपयोग आया है जिससे उक्त यन्दका अर्थ स्पष्ट हो जायगा ये उग आयम वानयाँका उल्लेख भी आपने कर दिया है और अन्तमें यह भी आपने लिख दिया है कि 'उत सभी आगम वाक्योंमें आये हुए उपचार, व्य बहार आरोप आदि शब्दोंका प्रयोग एक हो अर्थ हुआ है यह बात विद्वानोंके लिये स्पष्ट है ।' इस तरह हम देखते हैं कि आपके द्वारा मान्य उपचारके लक्षणोंमें प्रयुक्त 'व्यवहार' शब्दका अर्थआपके उससे स्पष्ट नहीं हो सका। यह ठीक है कि विद्वानोंके लिये व्यवहार, उपचार, आरोप आदि शब्दों के अर्थ स्पष्ट है, परन्तु उपचारके लक्षण में पठित व्यवहार शब्दका आपको कैसा अर्थ ब्राह्म है यह जानने के लिये हो हमने अपने प्रश्न में आपसे उसका अर्थ पूछा था, अज्ञात होनेके कारण नहीं पूछा था । व्यवहार प्रकरणानुसार बहुतसे अर्थ होते हैं। उनमे से कुछ अर्थ यहाँपर दिये जा रहे हैं
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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