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________________ ઉ૮ जयपुर (खानिया) तत्वचर्चा बड़े खेदकी बात है कि आपने अपने पक्ष के समर्थन में जहाँ-जहाँ और जितमे आगमके उसरण दिये है उनमें सर्वत्र इसी प्रकारकी गलतियां आपने को हैं। हमारी आपसे बिनय है कि आगमके वचनोंका अभिप्राय बिल्कुल स्वाभाविक ढंगसे आगमके दुसरे बचनोंके साथ समन्वयात्मक पद्धतिको अपनाते हुए प्रकरण आदिको लक्ष्यमें रखकर वाक्यविन्यास, पदोंकी सार्थकता, ग्रन्थकर्ताकी विषय-मर्मज्ञता साहित्यिक ढंग और भाषापांडित्य आदि उपयोगी बातोंको लक्ष्यमें रखकर हो ग्रहण कीजिये, अन्यथा इस हक प्रवृतिका परिणाम जैन-संस्कृतिके लिये आगे चलकर बड़ा भयानक होगा जिसके लिये यदि जीवित रहे तो हम और आप सभी पछतावेंगे । अस्तु । ___ आगे आपने लिखा है कि 'सहकारी कारण सापेक्ष विशिष्ट पर्यायशक्तिसे युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारिणी मानी गमी है, केवल उदासीन या प्रेरक निमित्तोंके बलपर मात्र दृष्यशक्तिसे ही दृष्य में कार्य नहीं होता' यह तो आपने ठोक लिखा है परन्तु इसके आगे आपने जो यह लिखा है कि यदि द्रव्यशक्तिको बाह्यनिमित्तोंके बलसे कार्यकारी मान लिया जाये तो चनेसे भी गेहूँको उत्पत्ति होने लगे।' इस विषय में हमें यह कहना है कि पर्याय-शक्तिको अपेक्षारहित केवल द्रव्यशक्तिको निमित्तोंके बलपर हम भी कार्यकारी नहीं मानते हैं, किन्तु हम आपके समान ऐसा भी नहीं मानते कि कार्य निमित्तकी अपेक्षारहित केवल विशिष्ट पर्यायशक्तिसे युक्त द्रव्यशस्तिमात्र से ही उत्पन्न हो जाया करता है तथा ऐसा भी नहीं मानते कि सहकारी कारणको सापेक्षताका अर्थ केवल इतना ही होता है कि सहकारी कारणको उपस्थिति वहाँगर नियमसे रहा हो करती है, उसका वहाँपर कभी अभाव नहीं होता। हम तो ऐसा मानते है कि एक तो उस पर्यायशक्तिको उत्पत्ति सहकारी कारणोंके सहयोगसे ही होती है, दूसरे पूर्व पर्यायशक्ति विशिष्ट व्यक्ति निमित्तोंका वास्तविक सहयोग मिलनेपर ही उत्तर पर्यायहा कार्यको उत्पन्न करती है और फिर उस उत्तर पर्यावशक्ति विशिष्ट द्रव्यशक्ति भी अवि निमित्तोंका अनुकूल सहयोग मिल जाये तो उस उत्तर पर्यायसे भी उत्तर पर्यायको उत्पन्न कर देती है तथा यदि अनुकल निमित्तोंका सहयोग प्राप्त नहीं होता तो वर्तमान पर्याय-बाक्सिसे विशिष्ट द्रव्यशक्ति उस पर्यायसे उत्तर क्षणवर्ती विवक्षित पर्यायको उत्पन्न करने में सर्वथा ही असमर्थ रहेगी? फिर तो उससे उसी कार्यकी उत्पत्ति होगी जिसके अनुकूल उस समय निमित्त उपस्थित होंगे । इसलिये आपने जो प्रकृनमें सनेसे गेहूं की उत्पत्तिके प्रसक्त होनेको आपत्ति हमारे सामने उपस्थित को है उम आपत्तिका हमारे सामने उपस्थित करना कुछ अर्थ नहीं रखता है, मयोंकि अन्य अनेक शक्तियोंके रहते हुए भी चने में गेहूँके उत्पन्न करनेकी शक्ति नहीं है। ____ आगे आपने 'यदि द्रव्यशक्तिको बाह्म-निमित्तोंके बलसे कार्यकारी मान लिया जाये तो चनेसे भी गेहूंकी उत्पत्ति होने लगे इस आपत्तिके उपस्थित करने में जो यह हेतु दिया है कि 'क्योंकि गेहूँ स्वयं व्य नहीं है किन्तु पुद्गल द्रव्यको एक पर्याय है, अतएव गेहूँ पर्याय विशिष्ट पुद्गल द्रव्य नाह्य-कारणसापेक्ष गेहके अंकूरादि कार्यरूपसे परिणस होला है। यदि विशिष्ट पर्यायरहित द्रव्य सामान्यसे निमित्तोंके बलपर मेहेंकी अंजुरादि पर्यायोंकी उत्पत्ति मान ली जाये तो जो पुद्गल चनारूप है वे पुद्गल होने से उनसे भी गेहरूप पर्यायोंकी उत्पसि होने लगेगी 1' इसमें हमारा कहना यह है कि आपने गेहूँ पर्यायविशिष्ट पुद्गल द्रव्यको बाहा-कारणसापेक्ष होमेपर ही गेहूंके अंकुरादि कार्यरूपमे परिणत होना लिखा है, सी ग्रह यदि आपने बुद्धिभमसे न लिखकर बुद्धिपूर्वक ही लिखा है तो इससे तो कार्य के प्रति निमित्त कारणकी सार्थकताका ही समर्थन होता है। इस तरह आपके द्वारा स्वोकृत कार्यके प्रति निमित्त कारणताकी अकिंचित्करताका आपडोके द्वारा खण्डन हो जाता है, क्योंकि हम
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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